ज्ञानस्वभाव और ज्ञेयस्वभाव | Gyanswabhava Aur Gyaswabhava

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Gyanswabhava Aur Gyaswabhava by कुन्दकुन्द - Kundkund

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५) १६ निर्मल पर्यायकों ज्ञायकस्वभावका ही अवलस्बन १५४ १७ “पुरुष प्रमाणे वचन प्रमाण” यह कब छागू होता है? १५५ १८ क्रमबद्धकी या केवलीकी बात कौन कह सकता है ? ५ १९ ज्ञानके निर्णय विना सब मिथ्या है, ज्ञायकभावरूपी तखवार १५६ से सम्यक्त्वीने संसारको छेद डाला है २० सम्यग्हष्टि मुक्त; मिथ्याहृष्टिको ही संसार 18 २१ सम्यर्द्शनके विषयरूप जीवतत्त्व कैसा है ? १५७ २२ निमित्त अकिचित्कर है, तथापि सत्‌ समझनेके कालमें सत्‌ ” ही निमित्त होता है २३ आत्महितके लिये भेदज्ञानकी सीधी-सादी बात १५८ २४ अपने ज्ञायकतत्त्वको लक्षमे ले ! १५९ २५ श्रे { एकान्तकी बात एक ओर रखकर यह समझ का २६ सम्यक्त्वीको रागहैया नही? १६० २७ क्रमबद्धपर्यायका सच्चा निणेय कब ? कं २८ “जिसकी मुख्यता उसका कर्ता १६१ २९ क्रमबद्धपर्याय समझने जितनी पात्रता कव ? এ ३० तू कौन और तेरे परिणाम कौन ? १६२ ३१ ज्ञानीकी दशा १६२ ३२ “अकिचित्कर हो तो निमित्तकी उपयोगिता कया ? १६३ ३३ जीव” अजीवका कर्ता नही है;-क्‍्यो ? १६४ 5) ३४ किसने संसार तोड़ दिया ? ३५ ईश्वर जगत्का द्र्ता और आत्मा परका कर्ता ऐसी १६५ मान्यतावाले दोनो समान भिथ्याद्ृष्टि है ३६ ज्ञानीकी दृष्टि और ज्ञान ३७ द्रव्यको खक्षमे रखकर क्रमवद्धपर्यायको बात १६६ ২৫ परमार्थतः सभी जीव ज्ञायकस्वभावी है;-किन्तु ऐसा कौन 7 जानता है ! 55 ६




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