द्विजेंद्रलाल राय और प्रसाद के नाटकों का तुलनात्मक अध्ययन | Dvijendra Lal Ray & Prasad Ke Natako Ka Tulnatamak Adhyayan

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Dvijendra Lal Ray & Prasad Ke Natako Ka Tulnatamak Adhyayan by ब्रजकुमार मित्तल -Brajkumar Mittal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शक्ति नहीं थी कि अंगरैज जैसी व्यवस्थित जाति सै टक्कर है सके । उतप्रभारत कौ शुद्ध आर्थिक दाष्टि से शासित करने में अंगरैजों দি জজ ই नियम बनारु, 'जिनसे यहां के राजे-महराजै,जमीदार,त्था जनस्नाघारण समी शंकित छौ उठे । उद्यातापिकार ,राजनीतिक अधिकार जमीदारी,राज्यों के प्रशासन आदि के বাম্পল্ন ধর ঘটা লিষল बनाए कि एक-कैन्वाद-स्क छौटे-छौटे राज्य उनके अधिकार मैं आने की । कुछ छौटै-छौटे राज्यों ने इसका লিতীঘ কিনা, फस और सतारा ने । परन्तु इससे शक्तिशाऱी उगरैजौ की नीति कौ परिवतेन न हुआ । फलत: बंगगल की तरह ही हिन्दी-दौत्र के जीवन में मी स्क बढ़ा परिवतन हु आया । यहाँ के जार्थिक जीवन मैं मी यह परिवतैन दै जा सकता था,क्सौंकि कम्पनी कै मठ के सामने कुटीर उचौ्गो कै माछ क्व स्तर गिरी ख्य । अंगरैजों ने टैक्स आदि के नियमों कै दारा भी भारतीय उचौगो कौ समाप्स करने का प्रयास किया। उचरमारत की समी प्रमुख शक्तियां--जाट ,राजपुत, सिक्‍्स,मुगठ समी दुष्ष्टियाँ सै पतित हौ चुकी थीं | अतः वंगौजों का विशौध हुडे रूप में न हे सका । मारत की जनता अंगौजों की छत्न-छाया में रुक सुज्यवा स्थित शासन की राह देख रही थी, परन्तु उ उनके शौक ण ,प्ताइुना,वपमान,अन्याय भर मिठा । सी प्थिति में प्रति कै स्पध जन-जीवन स्कं गहै चिन्तन कथा के अन्तर्गत आया' । हस चिन्तन मैं जीवन के अस्तित्व, व्यवस्था,न्थाय,और स्वाभिमान कै प्रश्न थे। मारत की হও কী कास्ति सामुदिक रूप से सः:४७४ रजनी तिक, पार्मिक,सास्कृतिक चिन्तन “वारा का ही परिणाम थी । इसके कारण की सौ कटय स्पष्ट छौ जाता है कि इस कास्ति की घष्ठप्टमि में मुगरहौं व्यवस्था ,शक्तिदीनता , विछा सता तथा वगौरजों की বাতিক এঘালাজিক। पार्मिक,सा स्कृतिक नीतियाँ हें | तंगरेजों की शासन-व्यवस्था मे एक और तो यहां की प्राचीन जीवन-व्यवस्या को तौढ़ा,इसरी और হজ? কী কীল समक क ` उम स्वामिति की भाक्ता के ভুলি আছ पैदा किया । बल! किया सर पति 5 कौम सपो ध कवी জান মাতে ঈ ভিত দীন




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