मध्यकालीन नारी भावना के परिप्रेक्ष्य में संत कवयित्रीयों का योगदान | Madhyakaleen Nari Bhavana Ke Pariprekshya Me Sant Kavayitriyon Ka Yogadan

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Madhyakaleen Nari Bhavana Ke Pariprekshya Me Sant Kavayitriyon Ka Yogadan by आभा त्रिपाठी - Aabha Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৫ पुरन्ध्रि भृहस्थ धर्म के लिये तुम्हें मुझे देते है, मै सौभाग्य के लिये वृद्धावस्था पन्त के लिये तुम्हारा पाणिग्रहण करता ह तुम मेरी धर्मपत्नी हो ओर गैं तुम्हारा गृहपति हू।' विवाह बंधन मेँ परस्पर एक दूसरे को बंधने वाला संस्कार. उपयम कहलाता है और बँधने वाले स्त्री-पुरूष यम और यमी है।' दम्पत्ति शब्द पति-पत्नी के सम्मिलित स्वामित्व का द्योतक था|' विवाह स्वयंवर विधान से होते थे।' विवाह के पश्चात वधू पितृगृह से पतिगृह जाती थी और नवीन घर में सास-ससुर, ननद देवर सब पर शासन करती हुई श्वसुर कुल की साम्राज्ञी होती थी।' सामान्यतया वेदिक बलि पत्ति ओर पत्नी सम्मिलित होकर देते थे लेकिन वैदिक युग में विवाह अनिवार्य नहीं होते थे। ऐसे भी बहुत उदाहरण मिलते है जहाँ अविवाहित स्त्रियाँ सोमलता की डाल लेकर इन्द्र के लिये बलि देती थी। कुछ बलि जैसे फसल कटने कं समय सीता बलि ओर रुद्र बलि केवल स्त्रयो के द्वारा ही सम्पादित की जाती थी। स्त्रियाँ पुरूषों की ही भाँति धार्मिक कार्यों का आयोजन करती थी। असमर्थता के निर्बल बिन्दु से उनका साक्षात्कार नहीं हुआ था। बलि के अवसर पर स्त्रियँ पुरोहित का कार्य भी करती शी अम्भृण ऋषि की कन्या वाक्‌ ह्वार रचित देवी सूक्त अपने में अप्रतिम है। वि्वारा कीं भी हम अकेले ही दैनिक प्रार्थना करते हुये पाते है। आरण्यक ओर शरै त सूत्र में ऋग्वेद १०/८५/३६ अथर्ववेद १४/१५०/५१ ऋग्वेद १०/८०/१० मध्ययुमीन हिन्दी साहित्य मे नारी भावना पृ०-१५ डा० उषा पाण्डेय ऋग्वेद १/१५५/६ ऋग्वेद १०/८५/४६ पोजीशन ऑफ विमेन इन एनाशियेन्ट इन्डिया पृ०- २१६ पोजीशन ऑफ पिमेन इन एनाशियेन्ट इन्डिया पृ०-२१७ ~ ~= च ~= ^ =




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