गुप्तजी की यशोधरा | Guptaji Ki Yashodhara
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यशोदरा में भुप्तनी की नारी-भावना - ई
के निर्माण फे पीछे पक हुन्दर रहस्य है, जिसका ज्ञान प्राप्त
करना पाठकों के लिए उपयोगी है। आज से ॐ वर्षो पूव जब
वीन्द्र रखीन्द्र आचीन-सादित्य का अध्ययन कर रहे थे, उम्र
` समय उनका हृदय काव्य के कुछ कोमल नारी-चरित्रों को
निरमभ उपेप्ता देखकर सदसा विचक्तित' हो उठा,” जिसके
ककस्वरूप उन्द्रोंने 'कान्येर उपेक्तिता नारी! शीषक निबन्ध
लिखा | इस ओर आचाय-स्व० भद्दावीर प्रसाद द्विबेदी फो।
नज़र गई ओर उन्होंने भी 'क्ाबयों को ठर्मिला-विषयक् उव्
सीनता' पर एक सुन्दर निबन्ध लिखा अस्ठु, युवक' कवि
भेथिक्तीशर्ण शुप्तनी पर इस लेख का प्रभूत प्रभाव पढ़ा।
হক নাহ্ काव्य-रचना ( खाकेत ) प्रोरंभ दो गई और उसमें
आशातीत सफणता सिली । इसके अनन्तर, गुप्तजी को' अन्त:-
/धष्टि काव्य की दूसरों उपेक्तिता 'यशोघधरा' ५९ गददे झौर' नारी-
गणो के प्रति सदावुभूतति ,से' प्रेरिप. होकर उन्होने यशोधरः `
' का निर्भाण किया। गुप्तजी ने भारतीय लजनाओं में भारतोय
सादर फ्री प्रतिष्ठापना करने की भरसखक चेष्टा.की, क्योंकि
ष्मांरी भारतेय लक्षनाओं का जो भी आदश रहा, वंद्र 'समंय
के चक्र में पढे. रुखा-सूखा रत प्रतीत होने क्षणया। पर
काक्ांतर में नए कलाकारों ने ओपनी प्रतिभा से उन प्राचीन
_ आंदर्शों को एक नया रूप दिया, उन आदशों का एक ढांचा
तेबार किया तथा उसे एक न३ आत्मा से अभिसिद्धित कर दिया ।
' यही कारण है कि इन दोनों पुस्तकों को कथावस्तु प्राचीन रही
है अवश्य, पर उसकी 'साज-शय्या नवीन है। जिस भादि-
क्वि वाल्मीकि फे मल स. 'मां निपाद अतिष्ठान्त्वभगस:-
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