इंग्लैंड का राजदर्शन | Ingland Ka Rajdarshan

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Book Image : इंग्लैंड का राजदर्शन  - Ingland Ka Rajdarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आदशेवादी विचारक-ब्रेडले और बोसांके ६१ (पतप) की पद्धति के परिवर्तन के कारण भीदहै। कुछ बातो के लिये यह मनोवैज्ञानिक परिपृच्छा और सामग्री के प्रात भी ऋणो है। इस विकास के द्वारा हमने यह अनुभव किया है कि हमारे मनों मे कितना अधिक उपचेतन तत्व है और वह उपचेतन तत्व चेतन तत्व से कितने घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है तथा वह चेतन तत्व मे कितनी सरलता से प्रवेश कर जाता है। हम यह अनुभव करने लगे हैं कि हमारे चेतन मन और सुभव, प्रथा ओर शक्ति की व्यवस्था में कोई सीधी-सादी विभाजन रेखा नही है--आऔऔर ये दोनो उतने ही अधिक सम्बन्धित हैं जितना .चेतना का केन्द्र उन उपचेतन और सहज आरादतो स सम्बन्धित है जो दैनिक जीवन को संभव बनाती है?। फिर भी यदि रव्य हमारे मन मे अधिकाशतः एक उपचेतन तत्व ही है तो भी वह वहाँ उपस्थित तो है ही; और किसो भी संकट के समय वह अ्रति शीघ्रता से हमारी चेतना क्रे सर्वाग्र भाग तक पहुँच जाता है। यह मनोवैज्ञानिक रीति बोसाके को हीमल के और अधिक निकट ले ज़ाती है। हीगल ने राज्य पर वस्तुगत मन (00]०८८४ए० 1777) शीषेक के अन्तर्गत विचार किया था; उसने राज्य को एक आत्मचेतन, एक आत्मशञानी तथा श्रात्म-व्यंजक व्यक्ति (2 56161170571 20৭ 96169.00091191075 1701ए7009] ) कटद्दा था। बोसांके भी संस्थाओं की प्रकृति का विश्लेषण करने मे उसी मागं का पथिक बनता हे । वह कहता है कि किसी संस्था की यथार्थं वास्तविकता इस तथ्य म “निहित है कि कुछ सजीव मन एक सजीव रूप से सम्बन्धित हैं? | उदाहरणार्थ, संसद्‌ एक कमरे मे बैठे हुये छः सौ व्यक्ति मात्र ही नही हैं; मूलतः, यह एक सम्बद्ध करने वाला विचार ही है, जो कार्य से सम्बन्धित होने के कारण एक प्रयोजन भी हे और एक विचार भी--एक ऐसा प्रयोजन जो छः सौ मानसों के लिए! समान है, और जो छः सो मानसो को एक समान अनुभव में एकीकृत करता है। किसी प्रयोजन से संयुक्त ऐसे विचार को हम एक नैतिक विचार (€1८2] 10०2) कह सक्ते ह । श्रौर इस कारण हम संस्थाश्मरो को नैतिक विचार कह सक्ते दै ओर यह भी कह सकते हैं कि वे , वैयक्तिक मनों का वह समान तत्व है जो उर्दै एक एकल अथवा सामान्य “मानस के रूप मे एकीकृत करता है। तत्वतः संसद न ईटें हैं ओर न चूना,




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