मुक्त द्वार | Mukt Dwar

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Mukt Dwar by भवनिप्रसाद मिश्र - Bhavaniprasad Mishrहेलेन केलर - Helen Kelar

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भवनिप्रसाद मिश्र - Bhavaniprasad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूरज की किरनों का वैभव अनुभव केरने के लिए अपने हाथ पसार दो । कोमल कुछुमों को कपोछों पर छगाओ और उनकी बनावठ की शोभा, आकार की नाजुक परिवर्तनशीलता, ताज़गी और छचक को अंगुलियों से समझो । शून्य को बुहारते रहने वाले पवन के झोकों को चेहरे पर झेलो और आकाश के धट पियो, हवा की अनथक हलचल को विचारों । पानी के प्रपातों और अनंत शाखाओं पर के पातों से बह कर आनेवाले परस-पावन संवादी स्वरों की परतो पर परतें अपने ग्राणो में पुँनीमूत करो | जब तक स्पर्श अनुभव करने की यह्‌ मावभरी शक्ति अपना काम करती है तव तक हमारी दुनिया छोटी कैसे हो सकती है ? मैं मरोसे से कह सकती हूँ कि अगर कोई देवी मुझसे आकर देखने और छूने की शक्तियों में से एक चुनने को कहे तो मैं मानव के हाथों की ऊष्मा से भरे रूप के घन, हथेली प्र आ ठगने वाले चंचल और भरे-पूरे आकारों का प्यारा स्पर्श-सुख छोड़ने को तैयार नहीं हूँ । ॐ पंद्रह €9




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