उपदेशसाहस्त्री का समीक्षात्मक अध्ययन | Upadesh Sahastry Ka Samikshatmak Adhyayan

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Upadesh Sahastry Ka Samikshatmak Adhyayan by श्रीमती मधु श्रीवास्तव - Shrimati Madhu Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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7 विचारों की प्रतिध्वनि पाते हैं। शहझ्लर के दर्शन की व्याख्या करते हुए डॉ० राधाकृष्णनू कहते हैं - “उनका दर्शन सम्पूर्ण रूप में उपस्थित है जिसमें न पूर्व की आवश्यकता है न अपर की,... चाहे हम सहमत हो अथवा नहीं, उनके मस्तिष्क का प्रकाश हमें आलोकित किये बिना नही छोडता।' चार्ल्स इलियट ने कहा दै - “কান্ত का दनि संगति, पूर्णता ओर गम्भीरता म प्रथम स्थान रखता दे] शङ्कर ने उपनिषद्‌ कौ एकतत्ववादी प्रवृत्ति को अद्वितवाद के रूप मं रूपान्तरित किया ই। शङ्कर ने ब्रह्म को परम सत्य माना है तथा ब्रह्म की व्याख्या निषेधात्मक ढंग से की दहै। शङ्कर ने यह नही बताया है कि ब्रह्म क्या है, बल्कि यह बतलाया है कि ब्रह्म क्‍या नहीं हे। ब्रह्म की व्याख्या के लिए उन्होने नेति-नेति को आधार माना है।* निषेधात्मक प्रवृत्ति शझ्गुर के दर्शन में इतनी तीव्र हे कि वह ब्रह्म को एक कहने की बजाय “अद्वेत' कहते हे। शङ्कर का विचार है कि भावनात्मक शब्द ब्रह्म को सीमित करते है। अतः वह निर्गुण निराकार ब्रह्म को भावनात्मक शब्दों में 2. 10181 1105001४ ४०01. ॥ (0908 446-447) 111048171 810 8000॥119॥ ४०1.॥ (0909 208) 4... प्रतिषेद्धुमशक्यंत्वान्नेति नेतीति शेषितम्‌। ददं नाहमिदं नाहपित्यद्धा प्रतिपद्यते।। (उतसा« 2/1) এ




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