सिंहद्वार | Singh Dwar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Singh Dwar by जीवन शुक्ल - Jivan Shukl

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जीवन शुक्ल - Jivan Shukl

Add Infomation AboutJivan Shukl

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
৬ সিকি ११) ससा सरव, अपवर्गे, स्वगं ! है व्यर्थ अहिंसा का सुघोष । हँस - हंबकर विप पी लेने दे-- होकर प्रलयकर, आशुतोप । हम धर्म नहीं उगने देंगे तलवारों के मेंदान वीच । वाये फसल प्यार भरकर-- काटेगे तन को सीच -सीच । अणु की महिमा के सजेठाट) उदजन उद्घोपण वार-वार । त्‌ वनी शाति की सूति मौन-- होती मर्यादा क्षार -क्षार ! জী হনলালা ! पीताभ वसन मेरी अरुणिम सौगात देख । पथश्रष्ट विकासों के गढ़ पर-- है ऋति कनाते, शस्त्र -मेख | जिस मंदिर मे थी देवमूति उसमे वैज्ञानिक की काया । बादल बन कर मेडराती है-- मानव - मन वाष्पो की छाया । सिह्द्वार




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now