निश्वास | Nishvas

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Nishvas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सैंकड़ों खियां अपने मूर्ख पतियों का तिरस्कार करती हैं।न तो सभी कालीदास जैसे विद्वान हो गये, न तुलसीदास के-से सुदृढ़ भक्त महात्मा ! संसार के लोग बाहर की घटनाओं को ही देखते हैं, भीतर कैसी ज्योति जर रही है ? उसे भला वे जान ही कैसे सकते हैं ? नाटक खेलने वाले अपने खेल को पहले ही से ठीक किये रहते हैं, उन्हें जो खेल करने होते हैं, उन सबकी जानकारी रहती है, वे किसी घटना को नई नहीं समझते, किन्तु अन्य दर्शकंगण सभी घटनाओं को कुतूहल की दष्टि ते देखते हैं, वे देखते हैं कि इस समय वह खेल हो रहा है सहसा दूसरा होने लगा | जिसे वे सहसा कहते हैं नाटक वालों के लिये यह निश्चित्‌ पुरानी घटना है । इसी प्रकार हम संसार में प्रत्येक दिन घटित होने पाली घटनाओं को देख कर उत्ते अकस्मात्‌ हई कहने लगते हैं | जिसे हम अकस्मात्‌ कहते हैं, वह सर्वान्तर्यामी के लिये निश्चित्‌ और साधारण सी बात है । छ




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