अष्टम त्रिक महापुरुष चरित्र [रामायण] | Ashtam Trik Mahapurash Charitra [Ramayan]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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असली नकली सुग्रीव १७ मांगो सुख से दनि, रही ना कसर तेरे उस फन मे अब आगे मत ताल, क्योकि मुश्किल होगी फिर रण में ॥ यह सर धड का खेल, खेलते क्षत्रिय खेल मगन से 1. क्या तेरी श्रौकात तीर से, फेक्र तुभे गगन से ॥ सहसगति का गाना समर का खेल मत हॉसी गिनों बहुरूपिया भाई | से अब भी तरस खाता हैँ सुनो बहुरूपिया भाई ॥९॥ किया अनुचित भी जा वूने उसे में माफ करता हैँ । भुकाओ शीश मत ज्यादा तनो बहुरूपिया भाई ॥२॥ प्राण अपना गंवा करे, करावोमे मेरी निन्दा । मिलो बच्चों से ताना मत बुनों, बहुरूपिया भाई ॥३॥ प्रभो तो शात कर रक्खा है, भैने अपने गुस्से को । एक सौ एक यह म॒हरे, चुनो बहुरूपिया भई ॥४।॥ - । दोहा नकली का व्याख्यान सुन, जल बल हो गया নুহ | कपि पति बोला गज कर, जेसे बन में रोर ॥ दम्भी प्रप5ुछणी यहा, करता क्‍या खर नाद्‌ । भेष बनाने का अभी, तुझे मिलेगा स्वाद | अभी मिलेगा स्वाद काल, भक्तण तुम को आता हे । नकली बनकर आप धोंस, खर हम को दिखलाता है ॥ अवकाश नहीं है बचने का, क्या मन में पछताता है । मरने के डरसे अब, क्यो पीछे हटता जाता है ॥ सुग्रीव का गाना काल तेरा उठा लाया, तुमे में आज कहता हू । च छोडू' अब तुझे चिड़िया, आगया वाज कहता हूं ॥१॥




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