चिद्विलास | Chiddilas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९
जितना निश्चित रुपसे ज्ञात है उतनेसे ही हम इस बातके लिए विवज्ञ हो
जाते है कि या तो इन शब्दोंकोी और उस विचारघाराको जिसमे इनको
स्थान मिलता है छोड़ दे वा फिर इनकी नयी निदक्ति करें ।
नयी निदक्ति करनेंमें किसी दार्णनिककों लज्ञित होनेकी बात नहीं
है परन्तु मेरी यह धारणा है कि इन च्दोका प्राचीनतम अथं ह आज
भूछ गये दे 1 इस अर्का निरूपण मेने अंगतः भारतीय खुषटक्रम-विचारः
में किया था । प्रर्ठुत पुत्तकमें उसका विशदीकरण किया गया है। बह
निदक्ति विनानके अनुकरट है ! निःसन्देह मेरे ऊपर वैज्ञानिक सिद्धान्तोक्ा
प्रभाव पड़ा है परन्तु मेरा নিলা ই कि वैज्ञानिक मतन कभो सथोधन
हुआ तब भी यह मीमाता रह जायगी | অহা द्ंनको विद्ानके पटे
नहीं चलना है परन्तु जहों विज्ञान नहीं पहुँच सका है वहों अपना प्रकाल
डालना हैं | यदि कहो विज्ञान दार्शनिक मतकी पुष्टि करता है तो विज्ञान
और दर्शन दोनोको इस सुयोगका स्वागत करना चाहिये |
दर्शन ओर विज्ञानका विरोध नहीं है | एके दूसरेको सतत सहा-
यता मिलनों चाहिये । मुझे यह देखकर आश्चर्व्य होता है छि प्राचीन
और मच्यथुगीन भारतीय विद्वानोका इस साहचर्ब्यक्षी ओर व्यान नहीं
गया। विज्ञानके और अड् चाहें न रहे हों परन्तु गणितमे इस देशने
बडी उन्नति की थी । गुणित और दर्जनमें घनिष्ठ सम्बन्ध है | दिऋ , काल
और कार्यकारणश्ड्भला दोनोंके विचारणीय विपय है। परन्तु न तो
हमारे प्रमुख गणिताचान्योमे कोई उल्लेख्य दाशनिक हुआ और न दार्श-
निकोमें कोई गणितका नाता हुआ। अमीतक यही परन्पग चली आा
रही है कि जो पण्डितगण दर्शनका अध्ययन करते है बह साहित्य और
व्याकरण तो पढ़ते हैं परन्तु गणितसे दूर रहते है। मेने इस पुस्तक्षमे स्थल
खलपर गणित गारूसे जो उदाहरण छिये हैं उनसे विपयको समझनेमें
सहाउ्ता मिलती है। विज्ञानके अड्जोंमे गणितका विपय उबसे सृध्म है।
तरकझात्र और गणितमने बहूव खादच्य है! भारतीय दार्गनिकोको इस
ओर ध्यान देना चावे ।
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