उपनिपत्सार | Upnipatsar

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Upnipatsar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपनिषत्तार । १५ प्राप्यास्तं गच्छन्ति भियेते तां नामह्पे स्र मदर इत्यव प्राच्यतं \ रवमचास्य दरदषएरमाः षोडद्रकखाः. पुरुषायणाः पुरषं प्राप्यास्तंगच्छ ` {न्त्‌ [गद्यत तसा नसस्ष पर्व इत्यव प्राच्य ते सएदाउकलाज्रता मवात ॥ ' উল ये समुद्र को बहती हुई नदियां समुद्र में पहुँच कर अस्त होजाताहें उनका नाम ओर रुप नांश हो जो ता है केवल समुद्र पुकारा जाता है ऐसेही पुरुष (बह्म) को जाती हुईं इंस परिद्रष्ठ < देखनेवाले ) की सोलहों कला ( प्राण १ श्रद्धा २ आकाश ३.वायु ४ अग्नि ४ जल ६ प्रथिवी ७ इन्द्रिय ८ मन ६ न्न १० वीय ११ तप्‌ १४ मन्त्र १३ करूस १४ लोक १४ नाम १६ ) “पुरुष में. पहुँच कर अस्त होजाती हैं उनका नासे.ओर रूप अस्त होजाता हे. केवल पुरुष (ब्रह्म) .पकारा जाता है बह अकर है वह्‌ अष्तहे ॥ | . छान्दोंग्य सब खल्विद्‌ ब्रह्म तम्जंज्ञानिति शान्तउप्रा सीत ॥ हे | „सव्र यह निर्चय्‌ बह्म है क्योकि उससे पंदा हुआ उसमें. ऊय होताहे और उंसीसे स्थितहै शांत हो के ऐसी ` उंपोलना करे #




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