श्री धर्म्मामृतपत्र [वर्ष २] [१८९९] | Shri Dharmmamrita Patra [Year २] [१८९९]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(ব दुसरा.):
मि- एम. एल-हां नई হী আই ই
पाति- पत्नी परेम नाटक॑ |
( अंक प्हिलां. ) १५
পিএ শশার ८9
देखने नहीं जाना, क्योंकि অর হাদী भले घरों की
লি: एल. एन-पर- दोस्त, यह यहां की रहने। स्त्रियों की नहीं है
वाली नष है ক
मांतदेथी-क्या? मेरे ही एक केरी नाटक देर
লি. হল; হন-ইঘা লী इमे मी माम ष्ोताद कि | जानेसे भके धरोकी रीति ` बिगढ जती दै, जो” और
- यद यहां की रहने वाली नहीं है ,
( इतने मे मि. के. फेल, का-परवेश }
मि. फे. पल-कदो यार क्या गुप हप बातें
करते हो.
मि. एप. एन-कुछ नही फ्रैंट ! एसे ही खडे हैं.
म्ि. के. घुछू-अजी हमसे क्या छिपाते হী;
सुन ही हैं.
सि. प्ल. णम-मापने क्या सुनी हैं
मर. के. एक-नये शिकारके ताककी
मि. एम, एन-कोनसाः नया शक्रार
भि. कै. पएल-उत्तर देना चाहता दी था कि घंटी
बज गई, और सबके सब अंदर अपनी २ कुरसीथो पर
जा बैठे.और जव-तक त्ताटक समाप्त मही हुआ तब तक मान
देवी की ही बातें करते रहे .भऔर जब नाटक समाप्त हो गया
आऔर मान देवी सहेलियों से द्ञाथ मिलाकर अपनी गाडी
भके .घर्योकी अकेली स्त्रियां जातीस हैं उनसे क्यों नहीं
विगडती.
हसैष्॑द-जौर किंस भने घरकी अकेली खी नारक
देखने जाती है...
मानदेवी-मिथ्र रुस्तमजी, मिश्र कब्याणदास,
লিং पंडिया, मिष्टर भवांनोशंकंर त्यादि की भी लिया
अकेकी है देखने जाती है. `, ` `
हरैष्ठ॑वद्-प्रथम तो यह ` सवं लोगं गुजराती हैं
इस्से इनकी ख््रियोंमें . अपने, देश, जैसा न तो परदां
हैं, और न पहरावा है, देखो, इस देश की :स््रियींका'
प्रथम तो पहरावा ही खराब है अर्थात् यहां ক্গী লিমা
केबल एक चोली, और एक.प्रोती पहरती हैं, और
यह दी वस्त्र पहरे बाजारों में चली, जाती हैं, যাই
मार्ग में सिर वा नाभी से कपड़ा खिसक, मी. जाता है
तो यह कुछ भी परवाह नहीं ऋरती है, .दूसरे जिस पुरुष
म तरैठ कर धरक्रो चली, तो कई एक गाडियां मिष्टर से चाहती हैं बाजार मे शै. खडी. दीकर, बातें करती
लोगों की इस के चंगले तक गईं, जब मान .देवी बंगले । ई, इसकी उनको: ललना, नह है, तो বির বহু গাছ
मे चलीगई तो बिष . लोम भी. जपने २ धस्कौ | मकेली नायकौ मे जाये तो- उनको क्या डर हैं. तिस पर
न्बले गये £
अकं २ परदार
स्थान ' हसै चन्द का मकान:
( इर्ख-बन्द, सबेरे निंद्रासे :जठ क़र मानदेवीके, पास
आ एक कुरसी पर्,बैठ कर बाते करता ই)
हसखी अंदू-कहो? कोनसा नाटक था और कैसा था.
\ मानदैवी; खेली मजनू क्राधा (पर बहुत ही उत्तम
था, तारीफ करनेकगी. )
: शंखन द्-प्याशे ` हम नारक- देखनेःसे मना नही
करते हैं पर यदि तुशे नाटक देखने हँ तो सत्यः हरिथिन््र
श्री.सेवाजीं छत्रपति, सीता,. नीलदेवी,.- इत्यादि. नाटक
, देखो जिनके. देखने कुछ उत्तम क्षान प्रपि हो
सरी वातं शृ है, कि जांगे को अकेली कभी नाटक
और । न. के: ज़ो लोग; हिन्दु/नियमको,
भीमे निथयसे, कहता हु किं भले घंरों की. स्त्रियां
फिर. भी अकेली नदीं जती होगी. .. |...
मानद नी-निसदेह -पषरोत्रा तो रमै सी. इनका
खराब समझती हुं. -कंहिये.मेरा 'प्रहरावा कैसा, हैं.
हसै्यन्द-यदि.-मस्तक पर रोलीका .तिकक न हो तो
ख़री पारसिन ही मालूम पड़े: औौर यह -पारास्िन पहरावा
कुछ सनातनी, .वा. सच्छा, नदी.दै); अपने: देशका অনা-
तनी, पहसवा अभी कुक दक्षण में पाया जाता है
भानदे बी-गापते जो. य् क्राः कि --मले - घरोकी
स्त्रि्याँ नाथ्क देखने अकेली. नहीं -जाती . ईद. तो
जिन लोगों के मैने नामू, बताये. हैं क्या यह . भक्त
लोग; नही है... 5 5: ও
' एसैचन्द्-भमञे;;: कने . काः हमारा तात्पय्य
हिन्दु धर्म की रिध्यानुसार/ चलते. वाल्ॉसे हैं, - और
तोड, विद्वेशी नियम पर
चलना चाहतें हैं, और इन्, लोगो. ने तौ अपनी कियो
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