दिवाकर दिव्य ज्योति | Divakar-divya-jyoti

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Divakar-divya-jyoti  by देवराज - Devraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[५ प छ 1 (| ( ছা त 99 69४ 95 98 & & त सन का महमा তন त इत्थं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्र | ` ` , धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य ॥ याटक्‌ प्रमा दिनङृतः प्रहतान्धकारा । ताद्क्छृती ग्रहगणस्य विकाशिनोऽपि ॥ भगवान्‌ ऋषमदेवजी की स्तुति करते हुए आचाय महा: राज फरमेति है-हे सवंज्ञ सवेदर्शी, अनन्तशक्तिमान्‌ पुरुषोत्तम, सगवन्‌ ! आपकी स्तुति कहाँ तक की जाय ? भगवन्‌ , आपके गुण कहां तक गाये जाए ? धमं का उपदेश देने कौ विधि जेसी च्रापकी है, चैसी दूसरे की नहीं । अंधकार का नाश करने मे सूयं जो काम देता है, वह तारे नहीं दे सकते! सूर्य के मुकाबले में प्रह, नज्ञत्र




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