श्री देववंदनमाला प्रारभ्यते | Shri Devvandnamala Prarabhyate

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| ( १९ ) क्‍ --.-, ॥ अथ खमासमाएना दोहां ॥ - 7 समकरित श्रद्धावंतने, उपतन्‍्यों झान प्रकाश ॥ प्र-: णमु पदकज तेदना, नात्र धरीने लच्लास ॥१॥. ए दहो गुण गुण दीछ कहेवो ॥ खमाण्॥ १॥ ; ॥ दोहा ॥ ॥ नहीं वर्णशादिक योजना, अथांव्भह होय ॥ नों इंद्धिय पंच इंडियें, वस्तु महण कांइ जोय ॥५॥ समण। वय व्यतिरेकें करी, अंतर मुद्दृते प्रमाण ॥ पंचेंद्धिय मनथी होये, इहां विचारणा कान ॥३॥ समण ॥ वर्षा दिक निश्चय वसे, सुर नर एह्ज वस्त ॥ पंचेंद्िय म- नथी होये, जेद अपाय प्रशस्त ॥ ४॥ समण० ॥ निर- शितः वस्तु स्थर भठे, कालांतर पण साच ॥ पंचेंडिय मनथी होये, धारणा अथे-छवाच ॥ ० ॥ समण० ॥ नि-. श्रय वस्तु अहे छते, संतत ध्यान प्रकाम ॥ अपायथी अधिके गुण, अविच्युति घारणा- ठाम ॥ ६ ॥ सम० ॥ अविच्यु ति स्वृतितएं, कारण कारण जेह ॥ . सख्य अ संख्य कालज सुधी, वासना घारणां तेह ॥ 9 ॥ समणा पूर्वोत्तर दशन छय, वस्तु अप्राप्त एकत्त॥ असंख्य काल




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