क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक | Kahetriye Gramin Bank
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ग्रामीण साख की उपयुक्त व्यवस्था करने के लिये सरकार के साझे मे स्टेट बैंक ऑफ
इण्डिया की स्थापना होनी चाहिए, जो देश के ग्रामीण क्षेत्रो मे अपनी शाखाओं का
जाल बिछाकर देहातो मे बैकिग सुविधाओ का विकास करे और कृषि के लिए
आवश्यक मात्रा मे सस्ती साख सुलभ करे |
भारत सरकार ने गोरवाला समिति की सिफारिश को स्वीकार कर लिया,
परन्तु सरकार ने कोई राष्ट्रीय वैक स्थापित न करके तत्कालीन इम्पीरियल बैंक ऑफ
इण्डिया को ही स्टेट बैंक मे परिणत कर दिया | सन 1955 मे स्टेट बैंक ऑफ
इण्डिया ऐक्ट स्वीकृत किया गया और इस ऐक्ट के अर्न्तगत इम्पीरियल बैंक की
भारत स्थित समस्त सम्पत्ति ओर दायित्व स्टेट बैंक को 1 जुलाई, 1955 को सौंप
दिये गये। इस प्रकार स्टेट बैंक 1 जुलाई सन् 1955 से भारतवर्ष मे कार्य कर रहा है।
काफी लम्बे समय तक व्यापारिक बैंको का ग्रामीण साख मेँ हिस्सा बहुत कम
था। उदाहरण के लिए, कुल ऋण में व्यापारिक बैंकों का हिस्सा 1950-51 में 09
प्रतिशत तथा 1961-62 मे 07 प्रतिशत था। इसके कई कारण थे- एक तो यह कि
भारत में कृषि मुख्य रूप से जीवन निर्वाह का एक साधन मात्र रही है और दूसरे
इसका स्वरूप असगठित व वैयक्तिक है। इसके अलावा, कृषि अधिकतर मानसून पर
आधारित है इसलिए इसके उत्पादन मे अनियमितता है और उतार चढाव होते रहते
हैं | इसके विपरीत, औद्योगिक क्षेत्र अधिक सगठित होता है और वह प्राकृतिक
कारकों पर निर्भर नहीं करता | यही कारण है कि बैंको का ध्यान कृषि की अपेक्षा
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