द्विवेदी युगीन काव्य में लोक - मंगल की भावना | Dwivedi Yugin Kavya Me Lok-mangal Ki Bhawana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ब्रिटिश शासन ही है और इससे मुक्ति का एक ही मार्ग है - स्वशासन ।
बीसवी शताब्दी में लॉर्ड कर्जन की नीतियो
जैसे-विश्वविद्यालय अधिनियम, ऑफीशियल सेक्रेट्स अधिनियम, और बगाल
विभाजन आदि की देश मे तीखी प्रतिक्रियायें हुईं। बंग-भग विरोधी
आदोलन का नेतृत्व प्रारम्भ मे सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसे उदारवादी राष्ट्रवादियो
के हाथ मे था. बाद मे इसकी बागडोर विपिनचद्र पाल, अश्विनीकुमार दत्त
अरविन्द घोष जैसे उग्र राष्ट्रवादियो के हाथ मे आया। उन्होने स्वदेशी,
बहिष्कार, हडताल आदि द्वारा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपना विरोध
प्रकट किया | स्वदेशी के बारे मे लाजपतराय ने कहा कि “स्वदेशी आदोलन
से हमे आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता ओर पुरूषोचित गुण
मिलेगे । ... ~. सारे धार्मिक और साम्प्रदायिक मतभेद के बावजूद हम
स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से एकताबद्ध हो सकेगे । मेरे ख्याल से,
स्वदेशी को सारे संयुक्त भारत का सम्मिलित धर्म होना चाहिए | ' इस
प्रकार उग्र राष्ट्रवादियों ने स्वदेशी के माध्यम से देश में राष्ट्रीयता की
भावना पैदा करने का प्रयत्न किया |
विवेच्य काल की अन्य घटनाओं मे 1905 ई० मे
जापान के हाथो रूस की हार ने एशियाई देशो मे आत्माभिमान की भावना
मे वृद्धि की | मुस्लिम लीग की स्थापना, से साप्रदायिकता का उद्भव हुआ
ब्रिटिश सरकार ने मार्ले-मिटो सुधार द्वारा राष्ट्रवादियो का मन जीतने का
प्रयास किया । इसके दारा सरकार नै केन्द्रीय ओर प्रातीय विधायिका
1. लाला लाजपतराय उद्धृत . भारतीय राष्ट्रवाद की सामाजिक पृष्ठभूमि
(ए० आर० देसाई), 279
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