अभिधावृत्तिमातृका तथा शब्दव्यापारविचार का तुलनात्मक अध्ययन | Abhidhabrittmatrika Tatha Shabdavyaparvichar Ka Tulnatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कल्हण कौ 'राजतरंड्रिणी' मे कश्मीर के राजा अवन्तिवर्मा के शासन-काल मे (८५४ ई०-८८३ ई०) कल्लट नामक व्यक्ति के अवतीर्णं होने का उल्लेख है। इसमे कल्लट का अवतार सिद्ध पुरुष के रूप मे माना गया है। प्रो० पी० वी० कणि ने कल्लट को शैव सम्प्रदाय की स्पन्दशाखा से सम्बन्धित माना हे। कश्मीर मे शैव-दर्शन का अत्यन्त महत्त्व हे। शिवसूत्र ही इस दर्शन का आधार है। इन सुत्रो की रचना साक्षात्‌ शिव द्वारा मानी जाती है। शैव-शास्त्र मे भी स्पन्दशाखा' को विशेष महत्त्व प्राप्त है। कल्लट ने शिवसूत्र पर स्पन्द सूत्र लिखे थे। इसका प्रमाण है स्पन्द-कारिका के अन्त मे इसके रचनाकार के रूप मे कल्लट का नाम उल्लिखित होना - समाप्त स्पन्दसर्वस्व प्रवृत्त भटकल्लटात्‌ स्वप्रकाशैकचित्तस्वपरिरम्भरसोत्सुकात्‌। डॉ० के०सी० पाण्डेय ने अपने ग्रन्थ अभिनवगुप्त मे भट कल्लट की चार कृतियो का उल्लेख किया है - स्पन्दसर्वस्व, तत्त्वार्थचिन्तामणि, स्पन्दसूत्र तथा मधुवाहिनी | कश्मीर के प्रसिद्ध यदी भटकल्लट मुकुलभटु के पिता थे। इनकं द्वारा अपने पिता का नामोल्लेख भी उनकी प्रसिद्धि का ही सूचक हे। कृश्मीर की परम्परा मे इतने प्रसिद्ध व्यक्ति का पुत्र होना भी इनके लिए गौरव का ही विषय था। सम्भवत यही कारण है कि इन्होने अपने विषय मे अधिक कुछ भी लिखने की आवश्यकता नहीं समझी होगी। अपने परिचय हेतु अपने पिता का नामोल्लेख मात्र कर दिया हे] मुकुलभटर के शिष्य थे प्रतीहारेन्दुराज। इन्होने उद्धट के काव्याल द्भारसारसग्रह' पर लघुवृत्ति' नामक टीका लिखी है। इस टीका के प्रारम्भ मे ही प्रतीहरेन्दुराज ने स्वय को मुकुलभट्‌ का शिष्य बताया है तथा उसके अन्त मे मुकुलभद्र की अत्यधिक प्रशसा की है * इससे ज्ञात होता है किं दिनश्रष्ठ मुकुलभट्‌ मीमासा, व्याकरण, तकं तथा युक गुद न शारदादेशमपास्य दुष्टतेषा यदन्यत्र मया प्ररोह ॥ ` अनुग्रहाय लोकाना भद्रश्रीकल्लदादय अवन्तिवर्मण काले सिद्धा भुवमवातरन्‌॥ (रा० त°, ५/६६) । ` स० का० इत्ति, काणे, पुर २७२ । ` अभिनवगुप्त, डो० के० सी° पाण्डेय, पृ० १७ | ` विद्रदगरूयान्मुकुलादधिगम्य विविच्यते। प्रतीहारेन्दुराजेन काव्यालड्डारसग्रह ॥ (काव्या० ल० वृ०, पृ० २४८) । * मीमासासारमेघातृपदजलधिविधोस्तर्कमाणिक्यकोशातृ साहित्यश्रीमुरारर्बुधकुसुममधो शोरिपादान्नभूङ्गात्‌। श्रुत्वा सौजन्यसिन्धोर्दिनवरमुकुलात्‌ कीर््चिवल्ल्यालवालात्‌ काव्यालङ्कुरसारे लघुवृत्तिमधात्‌ कौङ्कण श्रन्दुराज ॥ (काव्या० ल० वृ, प° ४३२) ।




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