अध्यात्म ज्ञानेश्वरी | Adhyatma Gyaneshwari

Adhyatma Gyaneshwari by गोपाल रघुनाथ रानाडे - Gopal Raghunath Ranadey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञानेश्वरी डे १० योगादिक साधन साकां क्षित आराधना मंत्र-यंत्र विधान सब छोड़ दो। ९० पतित्रता अपने पति की जैसे सेवा करती है उसी तरह से निष्काम चित्त से स्वधर्म का पालन करो । ९१ अन्य देवों की भक्ति करने का कारण नहीं । ऐसा कुछ न करो । सहज रीति से स्वधर्मयज्ञ का पूजन करते रहो । ९२ यह स्वधर्मरूप यज्ञ ही आप सब के आचरण करने योग्य है । ऐसा सत्यलोक-स्वामी ब्रह्मा बोले । ९३ देखो जब तुम स्वधर्म का पूजन करोगे तब वह तुमको कामधेनु जैसा हो जाएगा । फिर हे प्रजाजन यह स्वधर्म तुम्हें भूलेगा नहीं । ९४ गीता ११ ऐसा करने से सर्व देवता प्रसन्न हो जाएँगे और तुम्हारी मनोकामना पूरी करेंगे । ९५ सर्व देवता-गणों का स्वधर्म से पूजन करने के बाद वे तुम्हारा योगक्षेम निश्चित संभालेंगे । ९६ तुम देवता का पूजन करोगे तो देव तुमको संतुष्ट करेंगे । इसमें परस्पर प्रेम बढ़ेगा । ९७ फिर तुमको जो करने की इच्छा होगी वह अपने-आप सिद्ध हो जाएगा । मन की इच्छा भी पूरी हो जाएगी । ९८ तुमको वाचासिद्धि आएगी । तुम आज्ञा करने वाले होगे बड़े-बड़े अभिमानी तुम्शरे पास महार्वद्धि गहन जा जाएरों दर




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