नाटय - सप्तक १ | Natya Saptak 1

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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रामपूजन तिवारी - Rampujan Tiwari

डॉ राम पूजन तिवारी बिहार प्रदेश के भोजपुर जिला अंतर्गत बड़हरा प्रखंड के गंगा तटवर्ती इलाके के परशुरामपुर गांव के रहने वाले थे। उन्होंने कठिन संघर्ष के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। डॉ राम पूजन तिवारी एक निम्न वर्ग के परिवार से आते थे। गांव में रहने के बावजूद डॉक्टर तिवारी ने अपने बुद्धि और विवेक के द्वारा कई किताबों की रचना की। आज के युवक उन्हें भूलते जा रहे हैं। इलाके के लोग आज भी उन्हें बड़े गर्व के साथ याद करते हैं। सूफी साहित्य के लिए विभिन्न सरकारों द्वारा उन्हें कई स्वर्ण पदक, सिल्वर पदक और ताम्र पदक से नवाजा है।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) का अपना एक स्थान है। (४772 नाम से अग्रेजी में अनूदित हो कर इस काव्य ने लोकप्रियता प्राप्त की है। वह शायद इसी कारण । विदेशी पाठकगण भारतीय कवि की लेखनी की पौराणिक नारी को देखने की आशा से आ कर आधुनिक नारी को देख कर विस्मित हो गए हे । चिरकुमार-सभा (१९००-१९०१) आरम्भ से ही इस पुस्तक का प्रचलन 'चिरकुमार-सभा' तथा श्रजापतिर निर्वन्ध' इन दो नामो से होता रहा है। इस प्रहसन की रचना सबसे पहले सलाप- बहुल उपन्यास के आकार में की गई थी । बाद में अर्थात्‌ १९२५ के समय पेशेवर रगमच के आग्रह पर कवि ने इसको सपूर्ण नाटक के आकार में बदल दिया--- और तब पेशेवर रगमच प्र अभिनीत हौ कर नाटक ने प्रभूत लोकप्रियता अजित की । यथार्थत इसी को रवीन्द्रनाथ के नाटक का प्रथम मञ्च-साफल्य कहा जा सकता है । दीधेकाल तक निरन्तर इसका अभिनय चरता रहा । उसके वाद भी जव कभी इसका अभिनय हुमा, देको का अभाव नही रहा । शौकिया नाटक मण्डलियाँ तो अब भी अवसर मिलते ही इस प्रहसन का अभिनय करती ह्‌ । इस लोकप्रियता का क्या कारण है? प्रथम कारण हे नाटकं की मूल घटना का रसपूणे सहज सप्रेषण । आददवादी नवयुवको के एक दल ने देहा तथा समाज को उन्नत बनाने कौ इच्छा से चिरकूमार रहने की मनोकामना प्रकट की है--और चुपके चुपके चिरकुमार-सभा का एक भूतपूर्व सदस्य--जो अब स्वय विवाहित है तथा अपनी दो अविवाहित सालियो की शादी के विषय में उद्विग्न है, उनका ध्यानभग करने का आयोजन कर रहा है। दर्शक के चित्त में इस प्रकार की घटना का सप्रेषण जेसा सहज है उसी प्रकार व्यापक भी है। दूसरा कारण, चिरकुमार-सभा के प्रवीण सभापति चन्द्रमाधव बाबू, उक्त सभा के भूतपूर्व सदस्य अक्षय और उसके श्वशुराल्य के दूर सम्पर्कीय सबधी रसिक प्रभृति सजीव पात्र हं । तीसरा कारण है--सलप की असि-क्रीडा। चतुर्थे कारण--हास्यरस तथा रेप का मुहुमुहु स्फुलिग-वषेण, तथा पचम कारण है-- नाटक में प्रयुक्त रवीन्द्र सगीत का इन्द्रजाल । वंगला साहित्य मे प्रहसनो का अभाव नही है । किन्तु सव ओर से विचार करने पर चिरकूमार-सभा' को सर्वोच्च मासन पर स्थान देना पडता है । रुचि की स्थूलता, घटना की अशालीनता, सलाप का अमाजित रूप आदि बहुधा प्रहसन के दोष वन जाते हं । “चिरकुमार-सभा' इन सभी दोषो से मुक्त है--ओौर इसके




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