दयानन्दकेयजुर्वेदभाष्यकी समीक्षा | Dayanandkeyajurvedbhashyaki Samiksha

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Dayanandkeyajurvedbhashyaki Samiksha  by मुंशीजगन्नाथ - Munshi Jagannath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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--- । ( ६) লিগ বিজ हैं कहिये दोनोंमें कौनसा लैस सत्य और कौनसा भट है? ¦ यहां उक्त सत्याथेप्रकाशक्े पष्ठ ३३२ का न्याय स्तरणोय है कि इन दोनोंमें से एक बात रची दूसरों . झूठी ऐसा होकर दोनों बात कठी ॥ पष्ठ, २४९ जो २(एनः )पाप वा अधम करा वा करेगे सो सब, दूर करते रहै-पष्ठ २४६ सन आदि इन्द्रियों से किया वा मरण घमवाले शरोरों से किये हुए (एनः )' पापोंको: टूरकर शुद्ध होता हूं-पश्ठ २८३ पापों से निदृत्त होना-पृष्ठ ४५३ ढटगये हैं पाप. जिनके-पष्ठ ६९९१ पाप के दूर करने वालेहो--पहु १४५८: अच्छेमकार पार्थो निदृत्ति करने हारा कमें--अ्ध्याय २२ पष्ठ १५७' जिससे पाप रहित कृतकृत्य होकर--अध्याय ३४ पृष्ठ १०६५ पापोंको शुद्धि किया करो-अध्याय३३ पृष्ठ १४९२ हमारे पापको शी प्र सुखादेवे-अच्याय ३१ पृष्ठ ९९४० हमारे नि कटसे पाप को दूर कोजिये-अध्याय ३ पष्ट ६९११ ह* सारे ( अ्रघम्‌) पापको शीघ्र दूर करे-शच्याय रेई पृष्ठ ११४ है भगवन्‌ इश्वर! पाप हरने वाले-अध्याय ३९ पृष्ठ १२५४ पाप निदृत्तिके लिये ॥ दयानन्दाजुयाणियोंका रिद्वाल्त है कि पाप द्विना भोग




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