हिंदी नाटक - कोश | Hindi Natak Kosh

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Hindi Natak Kosh by डॉ० दशरथ ओझा - Dr. Dasharath Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका / १५ क्षिया गया है। दृश्य के लिए जहाँ पर जो शब्द मिला हमते उत्ती का प्रयोग उचित समझा | पाठकों को उन शब्दों से दृश्य का ही अर्थ समझना चाहिए। कही-कही पदों का प्रयोग अक के लिए भी किया गया है । रगमच-विर्देशर की सुविधा वे छिए घटनास्पलो का सकेत कर दिया गया है । इसका उद्ँ श्य यह है कि निर्देशक नाटक वा चयन करते समय दुश्य विधान के लिए अपनी व्यवस्था बता सवे'। ब्रनेक दृश्यो में जहां एक ही प्ररार का दृश्य-विधान मिठा वहाँ उसकी बार-बार पुनरावृत्ति नही की गई है। कारण यह है कि निर्देशक को बार- बार वैसे दृश्य विधान के लिए नई व्यवस्था नही करनी होती । अत उनकी पुनरा- चृत्ति अनावश्यक' समझी गई 1 क्यातक से पूर्व नाटक का कथ्य इस उद्देश्य से दिया गया है ताकि अभिनय के लिए नाटक का चयन करते समय चयनकर्ता को अपनो आवश्यकता के अनुमार सुविधा हो जाए। यदि कोई सामाजिक नाटक खेलना चाहता है तो उसे कथ्य की दो- चार पक्तियों से ही नाटक की मूल प्रवृत्ति का ज्ञान हो जाएगा। हास्य व्यग्य का नाटक खेलना हो तो उसे गम्भीर ऐतिहासिक या पौराणिक ताटकों झो कथावस्तु से उल्झना न पडेगा। कथ्य से नाद॒य प्रकार और লাহ্দীই্ছয কষা शीघ्र ही बोध हो जाएगा और चयनकर्ता अनावश्यक श्रम से बच जाएगा। कयावस्तु का सक्षिप्त विवरण इस कोश वी झपनी विशेषता है 1 क्यावस्तु का विस्तार निर्णय करने में हमने कतिपय सिद्धान्तो को अपनाया | पहला सिद्धान्त यह था कि अति प्राचीन एवं अनुपलब्ध नाटकों की क्यावस्तु इतने विस्तार के साथ दे दी जाए कि उनका पूरा चित्र पाठक की दृष्टि के सामने आ जाएं। अत क्या की प्रत्येक घटना का विवरण अकानुप्तार देने का प्रयास किया गया। इस प्रकार पाठक को मूलक्या सहज ही समझ में जा जाएगी। क्थावस्तु के विस्तार से नाटक कौ महत्ता का अनुमान लगाना उचित्त न होगा । प्राचीन बौर थति प्राचीन नाटक आज की दृष्टि से महत्त्वपूण भले ही म हो कितु उनका ऐतिहासिक महत्त्व अवश्य है। इसीलिए उनको विस्तृत रूप में देकर शेप नाटकों की क्या सक्षिप्त रूप मे दे दी गई । इसका यह आर्थ नहीं है कि जिस ताटक की फ्या विस्तार से दी गई है वह अधिक महत्त्वमय है और जिसे सक्षेप मे लिखा गया वह मह॒त्त्व-रहित है। शिव-पावंत्री की कथा के आधार पर अनेक नाटक लिखे गए हैं जिवमे सबसे पुराना हर-गोरी-विवाह नाटक सवत्‌ १६८० के आस-पास का मिला। यह राजा जगज्ज्योतिमल्ल के राज्यकाल की रचना है और इसे राजदरवार मे खेछा गया । इस कोश मे उसकी क्या विस्तार सै दी गई ह । निन नाटको मे कथा परिवतन का सकेत मिला उनकी कथावस्तु को भी बु विस्तार के साथ लिखा गया। सभव है कि क्यावस्तु मे एकरूपता वा मभाव कह्दी-कही पराठको के मत मे खटके | हमारा उद्देश्य कथावर्तु के विवरण मे एऋरूपता लाना है भी नहीं और यह सभव भी नही था। साढे छ सौ वर्षों मे विरचित दो सहद्त मे अधिक नाटक, नाट्य- देवता की विस्तृत यात्रा के पद चिह्न मात्र हैं। हमारा उद्देश्य उस रम्बी यात्रा पर




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