अनुवाद रत्नाकर ग्रंथमाला | Anuvada Ratnakara Granthamala-164

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Anuvada Ratnakara Granthamala-164 by रमाकांत त्रिपाठी - Ramakant Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) व्यज्जन हम तीन भागौ मं विभक्त कर सक्ते र ~ 1 व ) ভ্বহ; ভভলল-ক উ সূ १ वणे स्पञ्च क्ट जाते हैं क्‍योंकि 4 ४ अन-क छव + ल~ <्५् कष्ट ज क्र इनके उच्चारप में जिछ्ला का बग्र, मध्य ओर मूलभागु द्वारा कप्ठ, জাভু জাহি ভবানী কা स्पक्ष होता हैं। इन स्पर्न वर्षों को पाँच भागों में वाँठा गया है और प्रत्येक वर्ग का नाम उसके प्रथम वर्ण के आधार पर रखा यया है। यथा-- „ ठ, ड, 6, पं--८वंग अयवा द्व 1 ते, थे, दे, वे, नं दवग बयवा तु प, फ, व, भे, म--पवर्ग अयवा पु 1 ` ( व ) उन्तःस्य--अन्वःस्य का मतल्व ই ভীল নাভা 1 थय, व, र, ल' स्वर मीर च्यन्जन ऊ टीच करहु वतः ठे अन्तःत्य कहे जातें |! ( ये) झममा-जिन वर्षा के उच्चारण में गम वायु का प्राधान्य हो उन्हें वर्ण इस प्रकार स्वरों की संख्या 2३ और व्यग्जनों की संख्या डरे है | क्षत्र,ज्ञ कादि की गणना नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ये स्वतंत्र व्यज्जन नहीं ह । । ये दो व्यब्जनों तीन व्यञ्जन मिलाकर अचेक्त संयुक्त व्यम्बन बनाये जा सकते हूँ। यह्‌ ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक व्यण्जन में अकार जो जुड़ा हुआ है व्यब्जन के उच्चारण की सुविधा की दृष्टि से ही। वाच्तव में उनका शुद्ध रूप कू ,खू , गू লাহ হাহ ध्वनि-माधुय की दृष्टि से ( कठोर ) वर्ण कहते हैं এ] এ वर्गों के प्रवम, दिदीव वर्ण तया शा, प, से को पदप £ और वर्गों के तृतीय, चतुर्थ, पञचम वर्ण तथा य, र, छ, व, ह को मृदु व्यज््जन कहते हैं । &, थ, प, न, सम की अनुनाधिक्त भी कहते हैं । प्रत्येक्ष वर्ण का युढ उच्चारण युद्ध, स्पष्ट तथा सुन्दर छिखना योग्य गुर से चीं জী कभ्यास ৪ ৮ লং 4 भे ११ ৭, ५५ | মা क्र 1 দুম चर्णों का उच्चारण स्थान ओर थयत्त अक्षरों का उच्चारण मुख के विभिन्न स्थानों से होता है ब्तः उन्हें अक्षरों का उच्चारण स्वान कहते हैँ! ( बकुहविउजनीवानां कप्ठ: ) जब, कवर, हु तथा विसर्ग का उच्चारणं स्यान कप्ठ हैं मोर ये अक्षर कण्व्य कहे जाते हैं। ( इचुबथ्यानां ताहु )इ, चवर्ग, य घोर




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