हिन्दी साहित्य की दार्शनिक प्रष्ठभूमि | Hindi Sahitya Ki Darshnik Prishtabhumi

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Hindi Sahitya Ki Darshnik Prishtabhumi by विश्वम्मरनाथ उपाध्याय - Vishvammanaath Upadhyaay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राकथन 1 जकिपी.-0-*+ हिन्दी साहित्य की दार्शनिक प्रछ्ठभूमि! पुस्तक पढ़ गया हूँ | सने प्राचीन काल के वैदिक धमे से लेकर मध्ययुगीन वैष्णव, शेव, शाक्त तथा सिद्ध, नाथ और सूफी सम्प्रदाय तक का विवरण दिया गया है। आरम्भ के तीन अध्याय हिन्दी साहित्य के उदूगस और विकास के पूर्व की स्थिति का परिचय कराते हैं अतएव वे प्रत्यक्ष रूप से हिन्दी साहित्य की दासनि पृष्ठभूमि की सीमा में नहीं आते, परन्तु भारतीय धमे चौर दशन की मध्ययुगीन धारा के मूलस्रोत अतिशय प्राचीन हैं, उनका उल्लेख कि विना किसी भी भारतीय धार्मिक या दार्शनिक सम्प्रदाय का विवरण अधूरा ही रहेगा । इस पुस्तक में लेखक की दूसरी विशेषता यह है कि वह विभिन्न सम्प्रदायों की दाशनिक उपपत्तियों का परिचय कराता हुआ उन सामाजिक स्थितियों का भी निरूपण करता दै जिनमें वें परिवर्तेन हुये थे। विभिन्न सम्प्रदायो का एक-दूसरे पर किस भ्रकार प्रभाव पड़ा कितनी बातों में समानता है और कितना अन्तर है, इन प्र का उत्तर भी पुस्तक में दिया गया है | हिन्दी के कतिपय अमुख कवियों--खूर, तुलसी, कबीर ओर जायसी के दाशनिक विश्वासों और विचारों पर स्वतन्त्र लेख भी दिये गये हैं | पुस्तक के विवेचन का क्रम सेद्धान्तिक न होकर व्याव- हारिक और सर्वेसामान्य है | इससे परिढतां ओर विशेषज्ञों का काम भले ही न चले, हिन्दी के सामान्य पाठकों के लिए पुस्तक की उप- योगिता विशेष रूप से वढ़ गई ই । दशेन को स्वतन्त्र विषय मानकर उसके विकास-क्रम की विवेचना करने में लेखक को उतनी दिलचस्पी नहीं है जिदनी भारतीय समाज और संस्कृति को विकास-घारा में विभिन्न दाशनिक सम्प्रदायों का योग और महत्त्व प्रदर्शित करने में है ।




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