अनकहे अहसास | Ankahe Ahasas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.08 MB
कुल पष्ठ :
149
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ज्योति किरण सिन्हा - Jyoti Kiran Sinha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्योति भी प्रिय विछोह का सत्ताप सहती सुरियों की छाव में विरमति विकल हो उठती है सॉँसों की सरिता उफनाये लहर-लहर सुधियों के साये प्रिय से विलंग अकेलेपन की तिमिराच्छादित वीथियों में हताशा के कौँधे सिर टिकाये अपने दर्द उकेरने को विवश हो जाती है- समय सिंधु उत्ताल तरंगें रेत-रेत हो. गयी. उमंगें छुपी नयन की गहराई में पीड़ा की अनगिनत सुरंगें कंवयित्री का लेखन सिर्फ एक पक्षीय - संयोग-वियोग तक ही सीमित्त न रह जन जीवन के अनेक आयामों को समेटता चला है। गगा शीर्षक कविता में भागीरथी का मानवीकरण कर उन्हीं के मुख से उनकी पीड़ा कहती है - काशी के घाटों में विचरती गंगा अक्सर सोधा करती स्याह हुआ कैसे ये अम्बर हुई मरुस्थल कैसे धरती धार्मिक परिप्रेश्य में उद्धत ये पंक्तियाँ ज्योति की आध्यात्पिक सोच की परिघायक हैं। यथा - युग-युग से बहता जीवन जल फिर भी कम न हुआ हलाहल सदियाँ ... बीती... धोते-थोते मलिन हुई पाएं को दोते प्रकृति की सुषमा तो सभी को सम्बोधित आकर्षित करती है पर विरही मन को संतप्त भी कम नहीं करती। सुखद -क्षणों में जो मन-भावन लगती है वही विपरीत परिस्थितियों में दुखडायी बन मुँह चिढाती दिखती है निम्नांकित पंक्तियों में वही दर्द की चुभन है- अचकहे अहसास / 9
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