रघुवंश महाकाव्यम | Raghuvamshamahakavyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
580
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ भूमिका |
उत्पन्न उनश्चिय नायक होता हे अथवा एक वंशमें उत्पन्न अनेक राजा भी नायक
होते हैं। इस महाकाब्यमें श्यड्वार वीर तथा शान्त--हन तीनोमें-से कोई एक
रस्त अङ्गी (সমান) বা অন্ন হল अङ्ग रहते ह । नाटककी सभी सन्धियां
'मदह्दाकाव्यमें रहती है । हस महाकाम्थ में कोई हतिहासप्रसिद्ध या सजनाधित इसका
वर्णन रहता है। अथं, धर्म, काम नौर मोख--दइन चारो पुरुषार्थो का छाम महा.
-काभ्यका फल ८ प्रयोजन ) होता है । सर्वप्रथम अन्थादि्मे भाशीर्वादाद्मक,
नमस्कारात्मक या वस्तुनिदंशात्मक मड़्लाचरण किया जाता है। किसी-किसी
मद्दाकाव्यमें दुष्टोंकी निन््दा तथा सजनोंकी प्रशंखा भी की जाती है। इस महाकाबव्य
के प्रत्येक सगमें एक छुन्द होता है तथा सर्गके अन्तमें छुन्दका परिवर्तन कर दिया
जाता है अथवा अनेक छुन्दों वाले भी पद्य किसी-किसी सर्गमें देखे जाते हैं । न बहुत
बड़े ओर न बहुत छोटे क मसे कम आठ सर्ग महाकाब्य में होते हैं। सर्गकी समाप्तिमें
भभिम सगंकी कथाका सङ्केत रहता हे । सन्ध्या, सूयं, चन्द्र, रात्रि, परदोष, अन्धकार,
दिन, प्रातः, मध्या, आखेट, पवत, वन, समुद्र, सम्भोग तथा विप्रलम्म शङ्कार,
सुनि, स्वग, नगर, यज्ञ, युद्धयात्रा, विवाह, मन्त्रणा, पुत्रोस्पत्ति आाद्दिका साङ्गोपाङ्ग
वर्णन इस महाकाव्यमं यथावसर किया जाता हे । कवि, वणंनीय विषय, नायकया
-दू सरे छिसीके नामपर महाकाप्यका नामकरण किया जाता है । इसके सरग॑का नाम
-सरगमें वर्णनीय कथा-प्रसङ्गके आधारपर रहता हे ।
रघुवशमहाकाव्य-
इस प्रकार 'रघुवंश! तथा 'कुमारसम्भव” उपयुक्त मद्दाकाव्यके समस्त लक्षणोंसे
युक्त होनेसे 'महाकाव्य! की श्रेणी अते ईह ।
कुमारसम्भवर्म १७ অহা ই, इसमें कुमार अर्थात् कार्तिंकेयके जन्मका वणेन
'है।(हसकी रचना रघुवंशके पहले कालिदासने की ऐसा विद्वा्नॉोका अभिमत
'है। कतिपय विद्वान तो कुमारसम्भवके आदिस ७ सर्गोंको ही कालिदासकी रचना
मानते ह तथा कतिपय अष्टम सर्गको भी। इन आठ सर्गों' पर ही म० स०
मक्लिनाथकी व्याख्या है। शेष सर्गोंकी रचना किसी महाराष्ट्र कविने की यह
- डा० जेकोवीका मत है--रेखा माननीय कान्त।नाथ शाखी तेरङ्गका (9) कथन है ।
--दरगोषिन्द् शाखी
( १) चौखम्बा संस्कृत पुस्तकाय, बनारस से प्रकाशित कुमारसम्भ पञ्चम सगेकी
प्रस्तावना में तैलड़ शास्त्री का श्स प्रसंगमें विस्तृत विवेचन पढ़िये ।
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