पिठौरागढ़ सम्भाग की बोली और उसका लोक साहित्य | Pithauragarh Sambhag Ki Boli Aur Uska Lok Sahitya

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Pithauragarh Sambhag Ki Boli Aur Uska Lok Sahitya by भवानी दत्त उप्रेती - Bhavani Datt Upreti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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/ मिलती ह किन्तु इस पर समीमस्थ माणा नेपाली का भी पर्याप्त प्रभाव है। साथ हो इसकी अपनी उल्लेखनीय विशेष्यतारं है। मौ तक यहाँ की बेली को कुषमाऊनी के अन्तर्गत परिगण्णित करके ही सस्ता 'छण' कर लिया गया है जबकि आलीच्य बौली तत्वत: वैन्य रखती है। उदाहएण्तः कुमाऊनी मैं जी 'शाजस्थानी के प्रमाव की बात कही क्रयए०४३ै जाती हैं और उसकी पुष्टि के शिर उस्र णण और ১০০৮ की उपस्थिति, विखाईं जाती है बा पसर ~क ` स्थान पर्‌ कणि कै प्रयौम की जौ कुमाऊंजी की पिशेणता कही जाती है, वह पिठौरागढ़ की प्रमुख बौती कै लिए लागू जही होती है। णा के स्थान पर यहां न तथा' 55 ˆ करा ज्यव- हार्‌ बही हौता है) पासर्मं कौ * के लिए “श' या 'स व्यवहाय है । फिर मो यह अभिप्राय नहीं है कि बातौच्य बसौ कुमाउनी नहीं है वरत्‌ कथनीय है कि कुमाऊनी बौलियाँ को कम से कमर तीन बगाँ তো जा उक्ता कै } पतै व में अल्मीड़े की बीलियां जिमके बन्तात 'ख़बपरजिया , फल्दा कौठिया', क्या *बहांई वौलियां वाती है। दूसरे बे मैं वैनीताल की कुमाजनी, शपुर की साबरी कुमयूयां , चॉयर दिया, संगरौली बाली और दानपुदििया का उल्लेश् हो सकता है| तीसरे वर्ग मैं धौयाँली, अस्कोटी, सीराली, जौदारी, वरमियाँ और कासलिपारी बौलियां मुल्य है|, इत बात की और जाव वियपतन कामी स्याव बया था और उर्दि कपे माणा सर्वक्षण में कुमाऊुती के उक त्ति वैभिल्य की स्वीकाप मी किया: है | उप्ुँकः तीसरे वर्ग की बौलियां पिठारासढ़ বা की बौशियां है जिन्हें समूद्त कप में प्रस्तुत जब्ययत मैं *पिढाौरागढ़ की बौली' या *िठापूसढ़ी” काम है अभिकित किया गया है। पिठौरागढ़ दाँज ক এল্কার নলাভী दाँत শী सम्मिलित है. अतः प्राथन्पाथ गंगौसी बौली का मी विश्तेशणा विवैनन हुआ है | ६० गृामीण्य किल्‍यी -- ढा० पौरेल्द्र वर्मा, प० ८३ हिन्दी माणा ৮ ভাত লীভানাখ करी, पृ० ३११४ | हिन्दी उद्भव, विकास बार स्प -- ढा9 बाइरी, पु०७ ८६ आदि ₹ै० हित्दी उद्मव, विकास और रूप +- डा० बाहरी, ঘুও ८२ | ₹. মাতে का साणा दवैकणा -- ঘ আর শিব न्निव ६... माग ४, क १४७२ |




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