कबीर का रहस्यवाद | Kabir Ka Rahasyavad

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Kabir Ka Rahasyavad by डॉ. राजकुमार वर्मा - Dr. Rajkumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स कबीर का रहस्यचाद्‌ प्रेम को पाने के लिए उत्सुक हो जाती हैं और उनकी उत्सुकता इतनी बढ़ जाती है कि वे उसके विविध गुणों का अहण समान रूप से करती हैं। अंत में वह सीमा इस स्थिति को पहुँचती दें कि भावोन्माद मु জী ক লিন के विविध गण एक. ही.इंद्रिय पाने की ऋमता पास कर लेती तदस ठ शायद इंद्रियाँ भी अपना कार्य बदल देती हैं (एक बार प्रोफेतर जेम्स ने यही समस्या: आदश्शावादियों के सामने सुलझाने के लिए रक्खी थी कि यदि इंद्रियाँ अपनी-अपनी कार्यशक्ति एक दूसरे से बदल लें तो संसार में क्‍या परिवर्तन हो जायेंगे ? उदाहरणार्थ, यदि हम रंगों को सुनने लगें और ध्वनियों को देखने लगें तो हमारे जीवन में क्या अन्तर आ जायगा ! इसी विचार के सहारे हम सेंठ मार्टिन का रहस्यवाद से संबंध रखने वाली परिस्थिति समझ सकते हैं जब उन्होंने कहा था : मैने उन पलों को सुना जो शब्द करते ये श्रौर उन ध्वनिर्यो को देखा जो जाव्वल्यमान थीं | < अन्य रहस्यवादियों का भी कथन है कि उस दिव्य अनुभूति में, इंद्रियां अपना काम करना भूल जाती हैं। वे निस्तब्ध-सी होकर श्रपने .. कार्य-व्यापार ही. नहीं: समर संकेवीं । ऐसी स्थिति मे॑ आश्चर्य ही क्या कि इंद्रियाँ श्रपना काय अव्यवस्थित रूप से करने लगँ | इसी बात से हम उस दिव्य अनुभूति के आनंद का परिचय पा सकते हैं जिसमें हमारी सारी इंद्रियाँ मिल कर एक हो जाती हैं, अपना कार्य-व्यापार भूल जाती हैं। जब हम उस अनुभूति का विश्लेषण करने बैठते हैं तो उसमें हमें न जाने कितने गृह रहस्यों और आश्चयमय व्यापारों का पता लगता है | সপ ০ সা পাল = जन £]176270. 9055. 0090 90000060. 200. 58 10165 (102 81076, अंडरदिज़ रचित मिस्टिसिज्म एष्ट =.




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