पुष्टि मार्गीय सार संग्रह | Pushti Margiya Sar Sangrha

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Pushti Margiya Sar Sangrha by श्री द्वारकेशलाल जी महाराज - Shri Dwarkeshalal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६० ४? मि, तब श्रुति कहै हैं । परमेश्वर श्रीकृष्ण अच्यतत तुम्हारे नारायण आदिरूप तो हमने जाने हैं परन्तु हे अच्युत ! तिसमें हमारी वस्तु बुद्धि नाहीं है ब्रह्म सर्वेश सगण है यदे बृद्धि हमारी गुर में नाहीं है यासों पुराविद्‌ जो चुम्हारो आनन्द मात्र रूप को जाने है सो रूप हमकों दिखावों,जो तुमको हमारे अर्थ बरदान देनो है या बात कों सुनिके प्रकृति ते पर जो केदल ग्रनुभव मात्र सों जानों जाय अक्षर के मध्य में प्राप्त सो अपनों लोक दिखावत भये और दिखायके पीछे ग्राप बोले और कहो तुमकों जो इच्छा होय सो वो हम करें और तुमने मेरो ये लोक देख्यों जाते शौर उत्तम ई भी लोक नाहीं है। श्रौप परे ह नाहीं हैं। तब श्रुति कहे हैं करो रन कामदेवन सों कोटि गृण लावल्य है जिनमे ऐसे तुः्हें देख्कें हमारे मन क्षोभ कों प्राप्त भये हैं और कामिनी भाव को प्राप्त सये, याते जो तुम्हारें लोक की बास करिबे बारी गोपीजम तुम्हें पति मानिके परम तत्व सों भजे हैं,तैसे ही हमारी हू इच्छा है। तत्र श्री कृष्णचन्द्र बोले के तुम्हारों मनोरथ दुर्घद और दुलम है, तो भी मैंने अनुमोदन भले प्रकार আঁ कियो है, यास्‌' सत्य होयवे कू योग्य है। अबके आवन बारे जो सारस्वत कल्प तामे ब्रह्माजी सुष्टि करिबे कू ~




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