डॉ॰ रागेय राघव के उपन्यासों का शास्त्रीय अनुशीलन | Dr. Rageya Raghwa Ke Upanayaso Ka Shastriya Anushilan

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Dr. Rageya Raghwa Ke Upanayaso Ka Shastriya Anushilan by डॉ॰ लालसाहब सिंह - Dr. Lalsahab Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ खं सयव यधव के उपन्यार्सों का शाखीय अनुशीलन उपन्यास म लिखा है, हर आदमी ईश्वर म है। वह केवल एक नहीं, अनेक हैं। दायरे के बाहर आया, ध है। मनुष्य कृ प्रेम के तो सरि धर्म, सर कद उसके पौरे चटने लस्ते हैः। ध धर्म मे ड रोगे गड की आस्था थी, किन्त इन्हनि धर्म मे व्याप्त बह्याडम्बर का पोर विरभ किया है। इन्होंने 'चीवर', 'गह न रुकी' आदि अपने प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासों में धर्म की वैज्ञानिक व्याख्या भ त की. 'चीवर' में ये यशणल की 'दिव्या' की भांति बौद्ध धर्म का सखलित रुप स्वीकार नहीं करते हैं। টা का पलायनवादी रुए इन्हें ग्राहय नहीं है, क्योंकि यह रुप अस्नाम्माजिक और अस्वश्ध होता है। रह न रुकी उपन्यास का नायके दधिवाहम कहता है, लोक मे संयम का अर्थ तपस्वियों के कारण पलायन हो गया है। धाग जाओ, छोड़कर भाग जाओ। मैं भागुंगा नहीं। संयम का अर्थ घुटन और मड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है'। महायात्ना उधिरा रस्ता, 'महाया्र रेन ओर चंदा , देवक क्र बैद आदि उपन्यासो मे इनहोने धर्म के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि डॉ० गंगेय राघव का धर्म, मानवता कह धर्म है, जो मूलतः मानव-जानि की मंगल-कामना पर आधारित है। उपन्यासों च्ाा वर्गीकरण आधुनिक युगीन उपन्यास-साहित्य का विकास व्यापक रुप से हुआ है। সাও में जब उपन्यास का स्वरुप इतना बहुमुखी नहीं था, हब किसी भी कलात्मक कृति को उपन्यास (^. देकर सन्तोषं कर लिया जता था! आगे चलकर ज्यों-ज्यों उपन्चास के साहित्यिक स्वरुप का विकास होता गया, त्यों-त्यों दिवय वैविध्य की दृष्टि से भी इसका शेत्र विस्तार होता गया] आज यदि उपन्याम्न-साहित्व की विव्धिता का सम्यक्‌ अवलोकन किया जाय, तो यह जात होगा कि उसमें इस अल्पावधि में ही इतने अधिक और विभिन ग्रकार के उपन्यास लिखें गये है कि उन सबका वर्गकिरण करना कठिन है! वसतेः ओपन्यासिक श তান वर्गीकरण पूर्ण वैज्ञनिक नहीं हो सकते। फिर भी, विश्लेषण और ध्येय की भ्रिद्धि के लिए वर्गीकरण के जोखिम को स्वीकार करना पड़ता है। उपन्यासों के वर्गीकरण के लिए विभिन आधार प्रस्तुत किये गये है। डॉ० श्रीनाएवण अभिनेत्री ने उपन्यामों के लिए तेरह आधार अस्तुत किया है। ইক १. वर्ण्यवस्त की दृष्टि से । २. छापे की दृष्टि से ! ३. कथावस्मु के स्वरुप और लक्ष्य के अनुसार ४. कियाकलाय की दृष्टि से। ५. उपन्याम-संघटन के ४ पाए! ६. चरि-चित्रण की दृष्टि से) ७, शैली की दृष्टि से। ८. उद्देश्य की दृष्टि से! ९. जीवन के प्रति दृष्टिकोण के विचार से। ২০. दीर्घ विस्तार तथा प्रभाव की तीव्रता के विचार से। ११. साधारण अम्-दृष्टि के विचार से। १२. ऐतिहासिक वर्गीकरण द्वार। १३, वर्ण्य-विष्य के प्रति दृष्टिकोण के विचार से अध्ययन करने पर ज्ञत होता है कि समीक्षक द्वारा किये गये वर्गकिरण के उपर्युक्त आधारों को केवल दो मुख्य आधार ॐ अर्नगत ण्डा जः सकता है। वे दो अधर्‌ है- १. तत्व दिशेष की प्रमुख्ता। २. वर्ण्यं वसुः १ दायरे, प्र ११६ १ रफ़ सकी, पण १२५८) डे दिवी न्यस स्यि कः सम्की किकेकय মুত হজ?




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