शैवमत | Saiwmat

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Saiwmat by डॉ. यदुवंशी - Dr. Yaduvanshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ श त सत इस बात का समाधान करने में सहायता मिलती है कि रुद्र को मरुतों का पिता कहा गया है, जिनको उसने प्रृश्नी' (प्रथ्वी) से उत्पन्न किया | कुछ ऐसा जान पड़ता है कि प्रारम्म में मर्तों की कल्पना, प्रकाश से सम्बद्ध, रक्षुकगणों के रूप में की गई थी, जो सब युगों म॑ साधुजनों का संरक्षण करते हैं ' | यह कल्पना হুন্ভী- यूरोपियन-काल की है; क्योंकि मझतों ओर आवेस्‍स्ता के क्रवशियों में ओर ग्रीक ग्रौर रोमन जीनियाई' में बहुत समानता हैं। इन ग्रीक ओर रोमन “जिनियाई” की कह्पना, सपंधारी नवयुवकों के रूप में अथवा केवल सर्पों के रूप में की जाती थी। मझतों को मी मय: (मनुष्य), अहिभान', अहिसुष्म', अहिमन्यु' आदि कहा गया है, * जो सब-की-सब बड़ी अथंपूरा उपाधियाँ हैं। कुछ ग्रीक भी जिनको 710 9०७६0788? (संस्कृत में 'तृतपितरः) हते हैं, हमें मदतों का स्मरण कराते हैं; क्योंकि तवृत! भी एक वैदिक देवता है ओर कभी-कभी मरुतों के साथ ही उसका उल्लेख होता है। धीरे-धीरे मरुतों के स्वरूप में विकास ओर परिवतन होता रहा, जिसके फलस्वरूप उन्हें इन्द्र जेसे एक महान्‌ देवता का परिचारक देवता समा जाने लगा-जेसे ईरान में फ्रवशी अहुस्मज्दा' के परिचर, देवता वन गये थे । इन्द्रं यदि किसी प्राकृतिक शक्ति का प्रतीक है तौ वह है भंफावात काजो दीधंकाल तक सूखा मौसम रहने के बाद पावस की जवानी में चलता है, जिसके साथ बादलों की गरज, विजली की चमक ओर मूसलधार वर्षा होती है तथा जिसके समाप्त होने पर सूर्य अपने समस्त तेज के साथ गगन-पठल पर फिर निंकल आता है। चूकि ऐसे भंकावात में हवा का क्ोंका उम्र रहता है, जो अपने साथ मेघों को उड़ाये लिये चलता है तथा अन्य कई प्रकार से भी मभंकावात की सहायता करता हुआ प्रतीत होता है, अतः मरुतों का ऐसी हवाओं के साथ अधिकाधिक सम्बन्ध होता गया, और यहाँ तक कि दोनों का तादात्य हो गया। ऋग्वेदीय काल तक यह तादात्म्य हो चुका था। ऋग्वेद में मरुतों की कल्पना स्पष्ट रूप से पवन देवताओं के रूप में की गई है और अब उनको पवन देव वायु! की संतान माना जाता है, जो स्वाभाविक है| परन्तु बाद में, जब हवाओं की उत्पत्ति : का टीक-ठीक ज्ञान ऋषियों को हुआ, तव मरुत, जो प्थिवी से उत्पन्न किये गये थे, रुद्र के पुत्र कहलाने लगे; क्योंकि श्री जी० राव ने सुकाया है कि पएथिवी पर सूर्य की किरणों का ताप लगने - से ही हवाओं की उत्तत्ति होती हैं| मरुतों का एक अन्य नाम “सिन्धु-मातरः' संभवतः उनके ओर वर्षा के सम्बन्ध की ओर संकेत करता है | रुद्र के खरूप का एक और पहलू शेप रहता है और वह किंचित्‌ रहस्यमय है | ऋग्वेद के उत्तर भाग के एक सूक्त में कहा गया है कि रुद्र ने केशी के साथ নিন? ঘাল किया * | इस सूक्त की कठिनाई यह है कि इसमें यह स्पष्ट नहीं होता कि हम इसे एक लक्षणा मान सके या नहीं । सायणाचाय ने इसकों लाक्षणिक रूप में लिया है, और केशी का अर्थ जिसके केश! अर्थात्‌ किरण हों--यानी सूरः किया दै | इसमे उन्होंने 'यास्क' का अनु- १. डा० बानेंट : जीनियस : ए स्टडी इन इन्डो यूरोपियन साइकोलौजी; 0188. १६२६ ; १० ७३१ । २. ऋग्वेद < है, १७२, १; १,६४, ८ ओर ९; २,२३,२; ४,६१,४; ५,५३२,३: १०,७७, २ के १। ३, ऋग्वेद : १०, १३६ ।




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