पगली | Pagali

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Pagali by वियोगी हरि - Viyogi Hari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला সন্ধান স্পা পা नमी नानी जाम पूल ডা न वा সপস্ त नव मनी সী পপ আপ আশ” जनम সপ সপ সপ পল সাল পা ০ हं । लगा अमे दादीजार अपने जोगकी करामातें दिखाने । अखंड समाधि साथ कर भोलेभाले बच्चोको बहकाता था। प्वासों नवयुव इसके वेढे हयो गये । अरे, वह पक्का-पोढ़ा धूर्े था ¦ तुमह मादस न होगा, मे दिले मीतरकौी खवर लनेनाले हु' | उस पहुंचे हुए सिद्धके भीतर पेठ ही तो गई । हा हा हा हा हा हा हा ॥ सिद्ध बाबाकी ध्यान-पिटारीमें क्या-क्या अमोल रक्त मेरे हाथ आये | कई बनी-ठनी चन्द्रमुखियां ओर ढेंर-की-ढेर अशर्फियां ! काम, क्रोध, छोसम ओर मोहकाही उसके अल्तरा- लयमें अखण्ड साम्राज्य था। दुर्वासनाओंके दुर्गेन्धक मारे मुझ घिनोनीकी सी नाक सड़ी जाती थी। घबड़ाकर बाहर निकर आयी ¦ शौर सिद्ध बाबाको मेंने ऐसी लातें और ऐसे धूसे जमाये कि कहीं तो गिरी ट्ट-टाट कर उसकी रुद्राक्ष-माला, और कहीं गया छुड़कता हुआ पाजीका दण्ड-कमणडछ ! हा हदा हा हं। हा हा !| अरे हां; तेरे कारन ज्ञोग लियो है,घर घर अलख जगाई। श ৯০০০ जोगिया, तू कबरे मिलेगी आई । न भूख है, म प्यास। नहीं नहीं, प्यास तो है ओर बड़ी तेज दै । उस प्यासचे ही म छटपटा रही हूँ | पर उस प्याससे क॑ड ओर ओट नहीं सूखते, आंखें सूख रही हैं । हवा ! &




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