स्वर्ग और नरक | Swarg Aur Narak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
108 MB
कुल पष्ठ :
454
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लपाहुत ।
शक मित्र के चिट्ठी के अवांब देने में यह चिंद्री प्रन्थेकर्ता ने लिखी।
जा मिन्नतां आंप ने अपनो चिंद्रो में मेरें बांस्ते प्रगर्ट की है उस के लिये
धक्त को आनन्द हुआ और में उस मित्रता के. हेत॑ से आप को धन्यवाद देता
हूं। परंत लिस प्रशंसा के विंषय आप ने मेरी स्त॒ति करने प्ले लिखो है उस के में
জল বু कारंण मात्र स्वीकार करता हं किर्वह प्रशसा एक चिंह है कि आप
उन सच्च बातों के जो मरे किताबों में हैं प्रेमं करते हैं और इस लिये में उस
प्रशसा का हमारे मत्तिदातां प्रभ से संबन्ध करता है जिस की ओर से हर भांति को
सचाई चलतो है क्याकि बच सचाई आंप है। (यहत्रां पवं १७ बचन ६)। आप
को चिट्टी का आन्तभाग बही भाग है जिस परं मेरं मन विशेष करके लगा रहा
है ग्रार जिस में आप ने यह बात लिखीं है कि “इस वास्ते कि इंग्लेग्ड से आप
के जाने के पीछे कदाचित ऑप की पसतकों के बारे में कछ वादानवांद हो सके
ग्रेर इस कारण किसो का उन पस्सकों का यन्यकत्ता कठी बातों ओर अपवादों
से (जेसां कि वे लोग जे सचाई के मित्र नहों है यन्यकत्ता के गारब के विरद कट
मठ बांधंले है) बचाना पड़े तो इस प्रकार का अपवाद कठा ठरराने के लिये
कदाचित इस उपाय से कछ काम निकले कि आप अपने जीवनचरित्र का एक
छोटा सा बयान लिखकर मेरे पास छोड़ दें जेसा कि उन डोयीओं के विषय जो
श्राप का यनीव्सिटों में मिलो थीं चोर उस अधिक्रार या आस्पाद जहां तक आप
चढा था उस का बंयान आप के कटम्ब ओर बन्धजन का बखान ओर उस प्रधा-
नता ओर उत्फ्ृष्टपट जा किसी मनष्य के निवंदन के अतसार आप का मिला था
उस का वणेन नार अन्य अन्य बाता का खान ज्ञा गगर कङ् आमो आपकी
चाल चलन पर कद्ध दाष लगे ते अप्र के चरिज्र को निष्कलङूः ठदरावेगा ताकि
काद अनचित अविचारमति रेकौ जाकेया दर की जावे! क्योकि जहां सचाई की
जब्बसूटता और लाभ करने में आता हे तहां हम का चाहिये कि सचाद को रक्ता
ग्रोर सहारा करने में रर प्रकारे के न्यायो उपाय काम मे लवि मे ऊपर लिखित
बचन का विचार करके आप के देयालु उपदेश का अ्रोकार करने को ओर कुकाया
“गया ओर अब में अपने जोवनचरित्र की नीचे लिखित बालों के संत्तेप में
समभाता हूं ।
মন জিলী ২ जनवरो का हमारे प्रभ के অনল के ५६८८वें बच्छ म्र
स्त॒दहाल्म नगर में जन्म लिया। मेरे पिता का नाम जेष्येर स्वेदं था ओर षह
गी 1 न
निश्चित दुध्रा कि यद्र कसर ९६८८ हाना चादिषे।
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