अथर्ववेद भाष्यम काण्डम 12 | Atharvved Bhashyam Kandam 12
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
227
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সত [ 8৩৪] द्वादर्श काण्डसू ॥ १२॥ ( २,६४९ )
यस्या वेंदि परिगहन्ति स्ूस्या यस्याँ यज्ञ तनन््वत विश्वक-
माणः । यस्या सौोयन्ते स्वरवः पथिव्यामूध्वांः शक्रा सोडु-
त्याः परस्तात् । सानो श्रूसिवधयदू वधसाना ॥ ९३५
यस्थौस् । वेदिम् । परि-गहन्ति। भरस्यास् । यस्यास् ।
यन्न् । तन्वते । विश्वकर्माणः ॥ यस्यास् । मौयन्त ।
सवर॑घः। पयिव्यासू् । ऊ धवाः शक्राः। स्रा-हूुत्याः। परस्तौत् ॥
सा। नः । भूमिः । वध् यत् । बधमाना ॥ ९३ ॥
भाषाय-( यस्याम् मूभ्यम् ) জিজ भूमि पर( विश्वकमांणः )
विश्वकर्मा [ सब कामों में चतुर ] लोग ( वेवदिम् ) बेदी [ यज्ञ स्थान ] को
( परिगृहन्ति ) धेर लेते है, ( यस्याम् ) जिस [ भूमि ] पर ( यज्ञम् ) यज्ञ
[ देवपूजा, संगतिकर्ण और दान व्यवद्दार ] का ( तन््वते ) फैलाते ই।
( यस्याम् पृथिव्याम् ) जिस पृथिवी पर (ऊर्ध्वाः) ऊचे ओर ( शकाः ) उजल्ञे
( स्वरवः ) विजय स्तम्भ ( श्राहुत्याः ) आहुति [ पूर्णाहति, यक्पृतिं ] से ( पुर-
स्तात् ) पदिल्ते ( मीयन्ते ) गाद्रे जतेहे। (सां) बह ( वर्धमाना') बढ़ती हुथी
( भुभिः ) भूमि ( नः ) हमें ( वर्धेयत् ) बढ़ाती रहे ॥ १३ ॥
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भावाथ--मजुष्यों को उचित है कि कर्मकुशल लोगों के समान अपना
कत्तव्य पूरा करके संसार में डढ़ कीति स्थापित करे ॥ १३॥
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ये। नो द्वंघत् पृथिवि यः प॒ तन्यादु येइसिदासान्मनंसा ये
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वेन । तं ने क्षूमे रन्धय परवक्रूत्वरि ॥ ९४ ॥
१३-( यस्याम्) ( वेदिम् ) परिस्छृतां यज्ञभूमभिम् ( परिगृहन्ति
परितः सीदन्ति ( भूम्याम् ) ( यस्याम् ) ( यज्ञम् ) देवपृजासंगतिकरणद्ान-
व्यवहारम् ( तन्वते ) विस्तारयन्ति ( विश्वकर्माणः ) सर्वकमंकुशलाः (यस्याम्)
( मीयस्ते ) इ मञ् भ्क्तेपणे | निन्षिप्यन्ते ( पृथिव्याम ) ( ऊर्वः) उन्नता
( काः ) शङ्ख; ( आहुत्याः ) पृरयक्ञादित्यथेः ( पुरस्तात् ) घ्रे (सा)
( नः ) श्रस्मान् ( भूमिः ) ( वधेयत् ) वधेयेवु ( वध॑माना ) बृद्धि गच्ुन्ती ॥
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