रेखाएं | Rekhaen

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Rekhaen by तारा पाण्डेय - Tara Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 . मन में पावस है 4 রি, हर समय आसमान में बादल छाए रहते हैं | मेरे मन में भी इसी... ५१ + तरह घनघोर बदली छाई रहती है ! | | ' | कौन जने हृदय की आङुलता क्यों १ मन का रहस्य क्यों इतना ` अज्ञात है ? ही पृथ्वी पर बूँदें पड़ती है! | मेरी आँखों से भी सावन की भड़ी ला... जाती हैं! आँसू की यह बरसात क्यों मेरे प्राणों को बहाने के लिये... उत्सुक है १ रह रह कर विजली चमक रही है ! बीच बीच में मेरी आशा भी इसी प्रकार ग्रकाश दिखाती है ! केसे रोक पाऊँ इसे १ जीवन तो दुःख का छोर पकड़ कर उलम गया है। भिल्नियों की कर्कश मंकार से दिशाएँ चौंक उठती हैं ! मेरी अपनी ही करुण-पुकार उर को विदौर्ण कर देती हे ! वह शान्ति का स्वर भी इससे टकरा कर लौट जाता है ! ২৪ )




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