प्रेमोपाहर | Premopahar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
494
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री जेनेपदं रापायण प्रथम खण्ड | (५)
दवीप वानर त्रिशतनोजन* ठाम अधिक सुहामणो,
वास कीजे सुखे रदीजे, प्रेमसाचो आपणो ॥ ६॥
भगिनीरः पतिनो मापित मानीयो, पुरी किप्किधा वास वखाणीयो,
वरवाणीयों वरवास वारु, महिल मोटा मन्दिरू,
सुन्दराकार उत्तग पोपह शालः दिसे सुन्दरू |
उत्तमाचार अपार सहु अति, धर्म कमै समाचरे,
देव अरिदन्त सुगुरु सेवा, जन्मने सफलोकरे ॥ ও |
श्ानर दीपे बानर देखीये, राजा रीज्यो ग्रेम विसेखीये,
्रिसेखिये तव प्रेम हुरो, मारिवा करो नविरूहै ।
अन्नपाणी दीजीये 'नृप चचन' सहुए सई है,
चित्रे विरले सुच खेचर सूप बानर करे ॥
तेहथी अथ द्वीपनामे, जाम वानर तस्तरे ॥ ८ ॥
शीकण्डः हीथी उपन्यो नन्दन, चजसुकण्डः नामे आनन्दन ॥
आनन्द कारी राय इकदिन सभामें बठो जिसे,
दवीप अट मे जात्र देते जात देख्या सुरतिसे ॥
राय चलियो 'मानुष्योत्तरगिरी' यान खलाईयो |
साधु संगे लेई संयम राय मोक्ष सिधाईयों ॥| ९ ॥
चज्ञ सुकण्ठादिक अनेकजी, राजा हुवाछे सुविवेकजी ॥
सुनिवेकी राय हुवा धीशमां जिनने समे,
'घनो दधि' वर राय हुवों अनमता आवीनमे ॥
लेक नगरी तडितकेश” ज राय रूढ़ी रौजतो,
राक्षसां वानरां मांहि प्रेमनो गुण गाजतो ।
नन्दन वन में रूकानो धणी, रमचा चाल्यो साथे त्रियाघणी,
त्रियासाथे रायखेले चानरों इक एटले ।
राय त्रियाना कुचविदर्या, कोपीयो नृष तेटले ॥
१तीन सो 1 २ बहिननो पति | ३ छत्रादि ऊपर बानसनो रूप चित्रने
से द्वीपनो नाम वानर हीप हुवा | ह
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