प्रेमोपाहर | Premopahar

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Premopahar by श्रावक धूलचंद सुरणा जैन - Shravak Dulchand Surna Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री जेनेपदं रापायण प्रथम खण्ड | (५) दवीप वानर त्रिशतनोजन* ठाम अधिक सुहामणो, वास कीजे सुखे रदीजे, प्रेमसाचो आपणो ॥ ६॥ भगिनीरः पतिनो मापित मानीयो, पुरी किप्किधा वास वखाणीयो, वरवाणीयों वरवास वारु, महिल मोटा मन्दिरू, सुन्दराकार उत्तग पोपह शालः दिसे सुन्दरू | उत्तमाचार अपार सहु अति, धर्म कमै समाचरे, देव अरिदन्त सुगुरु सेवा, जन्मने सफलोकरे ॥ ও | श्ानर दीपे बानर देखीये, राजा रीज्यो ग्रेम विसेखीये, ्रिसेखिये तव प्रेम हुरो, मारिवा करो नविरूहै । अन्नपाणी दीजीये 'नृप चचन' सहुए सई है, चित्रे विरले सुच खेचर सूप बानर करे ॥ तेहथी अथ द्वीपनामे, जाम वानर तस्तरे ॥ ८ ॥ शीकण्डः हीथी उपन्यो नन्दन, चजसुकण्डः नामे आनन्दन ॥ आनन्द कारी राय इकदिन सभामें बठो जिसे, दवीप अट मे जात्र देते जात देख्या सुरतिसे ॥ राय चलियो 'मानुष्योत्तरगिरी' यान खलाईयो | साधु संगे लेई संयम राय मोक्ष सिधाईयों ॥| ९ ॥ चज्ञ सुकण्ठादिक अनेकजी, राजा हुवाछे सुविवेकजी ॥ सुनिवेकी राय हुवा धीशमां जिनने समे, 'घनो दधि' वर राय हुवों अनमता आवीनमे ॥ लेक नगरी तडितकेश” ज राय रूढ़ी रौजतो, राक्षसां वानरां मांहि प्रेमनो गुण गाजतो । नन्दन वन में रूकानो धणी, रमचा चाल्यो साथे त्रियाघणी, त्रियासाथे रायखेले चानरों इक एटले । राय त्रियाना कुचविदर्या, कोपीयो नृष तेटले ॥ १तीन सो 1 २ बहिननो पति | ३ छत्रादि ऊपर बानसनो रूप चित्रने से द्वीपनो नाम वानर हीप हुवा | ह




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