ज्ञानदीक्षा | Gyandiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शानदीक्षा
बरढनो और भाइथी, >
आप जो मुझे यहाँ बुलाया है वह मे, ऐसा जान पडता है,
भानों पश्चिम भारतने श्ीतिपूर्चक पूवेन्भारतकों निमन्वित किया है| में भी
पून-मारतकी अ्रशुत्तिकों पश्चिम भारतके इस ৪৭০৬ সা খুন পণ
करके लावा हूँ | दमारे इस देशयें देवताके यूशमिपेकका। यह नियम है
कि ऊफ पेवताके समरुत धाम ओर चेनोसे तीर्यादक लेआ।न। पड़ता है|
एक तीथेक জর্জ अभिषेक अधूर्स रहजाता है, इसीलिए तीर्थयात्री
नाना जोचोसे तीथीव्क लाकर देवतारका ए७मिप्रेक करते हैं। अन्तर
সং নাহ নিই গুহ শিখন तीथैका जल सअ्रह करनेकी योग्यत।
লী नहीं होती | श्रद्धाका पिन तीर्थोदकं चदन कर धकंना ओर
मी कठिन काये है। मैं अपनेको उसके योग्य नदी समझता | फिरमी এ
लोगोके स्नेहके जोरसे धुफे यह दुःसाध्य मार अहुशु करना पड़। है | परन्छ
यद्यपि आपने भार धुके दिया है, फिसमी छुफे, नास- सायक। ही दायित्व
स्वीक।९ करनी है | क्योंकि सब कुछ तो आ।५ ही रमे । मं तो निभि-प-
य् हू | देवताच रथ खींननेकेशिए काठक। घोड़ा सभाथ। जरूर जाता
है, यच्यपि सींनते उसे भक्त योग ही हैं। में मी इस अचुष्ठान-रूपी रथक।
काठ5क। घोड़ा हूँ | खीतन। अ (पने ही ५३५५ |
आपके विद्यापीठका পাকা ই नम्बर हिन्दी-विद्यापी०?। अर्थात्
हिन्दी भाष। ओर हिन्दी चरकति ही आपका प्रधान लच्थ है। हमारे पेशमें
विद्या ओर सस्कृतिकी अधिष्ठानी देवी सरस्वती हैं।४मे यह देखकर संतोष
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