आदर्श विभूति | Adarsh Vibhutiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किचिदितिवृत्तम्‌ & लोकाशहे युलो आगमान्ि मयन्थ सा | मति मन्थानकं श्रवा नेशंचक्र स्वसन्कृतिषर्‌ ॥२१॥ अर्थ:--छोकागाह में अपूुर्द गृण था, जिससे कि वुद्धि सप मन्यन दण्ड से उन्होंने आगम समुद्र को मथ लिया और अपनी कीर्ति की इच्छा नहीं को ॥रह॥ ग्रावात्सीत्सद्टः सेवार्थ: व्याचख्यावागम स्वकम्‌ | इति बृर्च् तमोलीनं, तदीयं नोपलम्यते ॥२१॥ अर्थे--आपने संघ सेवा के छिये अवास किया, और अपने श्गों पर व्याद्यान दिया, फिर भो आपका पूर्ण इतिहास अन््रकार मं ही हेः जोकि दृष्प्राप्य हैँ २२) कथ्िंद्‌ श्र ते चहु-विभववान्‌ भूरि विद्मनभृत्सः, ध्राचष्टेऽन्यः प्रचचन पटुः स प्रतीयान्‌ व्यजेष्ट | ग्रच्यप्येको शुवि न सेहल यस्तत्पुरे त्स्य वीथी, ववासीदित्यप्यवितथपिद॑ ख्याति तम्मान्यमृूलय |॥२३॥ अर्य--क्ोई कहता है कि शाहं जी बहुत वड धनी ये, दरा कहता ह कि भाप एक चतुरत्रक्ता थे तया विरोधियों को परात्त किय। । किन्तु आज तक एक भी ऐसा यहां नहीं हुआ, जो बताता कि छोकाशाह की अहमदाबाद नगर की किस बघली में जन्म भूसि थी । कोई सी इस दियय में सान्‍्य प्रमाण नहीं कहता हैँ ॥ रडे ॥ कञ्चित्कालं विमलमुनिता. तत्कृतोच्चेश्चचाल, ग्राप्तात्ता सा यतिभिरमवरद्ेभवा5डरव লুক: | आयुर्वेद. गशितमथवा शाकु्नं. योगशास्त्रम्‌, सामुद्र वाऽ कयत यतयस्तस्यरशस्तं स्वशरभ्‌ ।॥ २४ ॥ बथ-- -उनकी चलाई हुई शुद्ध साधुता कुछ समय तक तो अच्छी चली, किन्तु धनो के आरम्भ समारम्भ में लीन तथा परवज्चन में प्रवीण एसे यत्तियों ने




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