भारत पुत्री | Bharat Putri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारत पुत्री | [४
शब्दुर--देवी, सत्य है।यह टूटी भौंपड़ी ओर पुरानी खटिया, हम
लोगों के प्रेम की अथाद लहरें, उमडते हुए हमारे লনা কী
गोलोक और साकेत का सा आनन्द देती हैं | हम लोग
अपे प्रेम सय जीवत में एक राजा से कौत कम हैं !
शीला--राजा, राजा तो महाराज महाद्:खी होता है । केबल
वैभव ही सुख का लक्षण नहीं हो सकता । सुख ईश्वरीय
देन है जब कि वेभव मनुष्य के खुद के हाथ की करा-
मात है | मनुष्य अपने ही हाथ से वेभवशाली बन कर
अपना ही बुरा कर लेता है ।
शक्ए--सत्ती ! फिक्र न करो, उम्हारे इन शब्दों ने शक्कर के
कठोर मन को फौलाद् की सस्ती देदी है- वह अब
पिघलेगा नहीं । अच्छा, समय मी होने वाला है, जाऊँ
राजा के पास, देखें
( एक फटी पगडी सिर पर रख कर नंगे पांव
चल पडता है } )
श्यं तीसरा
स्थान--राजदरबार
८ दरबारी गण वेढे द । कालिदास महाराज के सिंहासन के
निकद दक्षिण पत्त में बेठे मुस्कुरा रहे हैं। ) ;
न्लाह्मणु--(परवेश) आशीवोद राजन ! ।
राजा--(मयसभा के अम्युत्यान देते हैं) नमस्कार वराह्मणद्रेव ! आइये
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