ब्रह्मसूत्र के वैष्णव भाष्यों का तुलनात्मक अध्ययन | Brahmasutro Ke Vaishnav Bhashyo Ka Tulnatmak Adhyayan

Brahmasutro Ke Vaishnav Bhashyo Ka Tulnatmak Adhyayan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विज्ञप्ति परसपुर के जन्य समी भाप्यो जी भोति वेष्णव-भाप्यों से भी परस्पर पूत्रपाउ-सम्बन्धी कुछ भेद होने के कारण उनमें सूत्रों के क्रमाह समान रूप से नहीं है, किन्तु यूत्र-निर्देश की निश्चयात्मकृता के लिए यह आवश्यक हो जाता ह कि यूत्र-निर्देशक क्रमाइ में एकरूपता हो । यतः उक्त एक- रंपता कित्ती एक ही साप्य के अनुसार यृत्राए्ु देने से लाई जा सकती है, अतः प्रस्तुत सन्य में स्त्र देष्ण-भाप्यों में ग्राचीनतम माने जाने वाले माप्य रामानुजभाष्य--के अनुसार यत्नाडु दिए गए है और उत्त भाप्य के अनुप्तार ऊ्माह्ु सहित बद्धयूत्रयाठ परिशिष्ट कः में दे दिया गया है | विद्वान्‌ पाठकों से निवेदन हूँ कि ग्रस्तुत यन्‍व में जहाँ कहीं भी किसी विशिष्ट भाष्य के नाम-निर्देश के बिना सामान्यतः पुत्र सिवा यया, वहां उत अंक से उपरी सूत्रका निद सम ভান जो रामानुजमाप्य मेँ उपे निर्दि हं । यदि कही क्रिी जन्य माप्य का प्ृतरह् दिया गया है ति उसके साथ उत्त माप करा निश अनिवार्यवः कर दिया गया है | दूसरा निवेदन यह हू कि प० ३१ पक्ति १ में गीतायंसप्रह' के स्पान पर गातायमग्रहरक्षार और 9० १8२ एंक्ति २५ मे वल्तमः के स्थान वलदेयः भूल ने च्पययाह तना उती प्रार्‌ ४० २२ पंक्ति ०€ प मत्‌ हरि ॐर्‌ नत प्च, ये नाम उुर छप गर्‌, अतः यथावत्‌ सं ्योधन कर उक्त स्थलों ए क्रमः गीतायंसंग्रह', 'बल्तनों और मत्त हरि, भत्‌ प्प पटे जाने की शपा फ्री जावे । ---तेपफ




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