न्याय्य समाज के मूलाधार | Nyayay Samaj Ke Muladhar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राष्ट्र निर्माण के पाँच आवश्यक तत्व १७
है 1 यह तकं, कि उचित रूप से क्रमाः वधमान आय कर निजी विनियोग
के लिए प्रोत्साहन को कम कर देता है, व्यवहार में खरा नहीं उतरता ।
अव से लगभग आधी शताब्दी पहले जब संयुक्त राज्य असरीका मे इस
प्रकार का कर पहले-पहल लगाया गया था, तब लोगों ने बहुत अधिक
चीख-पुकार की थी । परन्तु इस बात का कोई परिणाम नहीं है कि आय-
कर ने संयुक्त राज्य अमरीका की उत्पादन की क्षमता को हानि पहुचाई
हो । इसके बजाय इस कर ने आयो का एक प्रजातन्त्रीय पुनः वितरण
कर दिया है, जिसके फलस्वरूप बहुत बड़ पेमाने पर कय शक्ति उत्पन्न
हो गई है, जिसने हमारी अर्थ व्यवस्था को उत्पादन के और भी ऊंचे
स्तरों की ओर बढ़ाया है ।
परन्तु करों द्वारा और उपभोग में कमी द्वारा जितनी स्वदेशी पूंजी
संचित की जा सकती है, उसकी भी स्पष्ट सीमाएं है । जिन करों को
उगाहना आसान होता है, जैसे उत्पादन कर और बिक्री कर, उनका भार
सबसे अधिक उन लोगों पर पड़ता है, जो उन्हें चुक़ा पाने में सबसे कम
समर्थ होते है और इसलिए वे लोगों की उस क्रय शक्ति को कम कर देते
हैं, जो रहन-सहन के न्यूनतम स्तरों को बनाये रखने के लिए आवश्यक
है। जिन करों से अर्थ व्यवस्था को सबसे अधिक लाभ पहुँच सकता है,
जसे कि आय कर, वे इस वात के लिए बदनाम हैं कि उनको उगाह पाना
कठिन है 1 इसके अलावा क्योकि विकसित होते हुए राष्ट्रों में बहुत थोड़े
लोग एसे होते हें, जिनकी आय बहुत अधिक होती है, इसलिए कर का
यह स्रोत बहुत सीमित होता है।
यद्यपि कच्चे माल का निर्यात भी पूंजी के संचय का एक बड़ा
साधने वन सकता है, परन्तु इस प्रकार के नियतिं से स्वतः इस वात
का भरोसा नहीं टो जाता कि व॑सा विस्तृत आधार वाखा आधिक विकास
हो ही जायेगा जिसके लिए हम प्रयत्तशील हं । उदाहरण के लिए,
कॉफी, रांगा, तेल और “अन्य आधारभूत सामग्रियों के निर्यातों से लैटिन
अमरीका के अनेक उत्पादकों को बहुत आय हुई है। परन्तु क्योंकि इन
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