सोमनाथ रत्नावली | Somnath Ratnavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ५ )
पौद़ी दती पल्लिगा पर मे निशि ध्यान श्रौ ग्यान पिया सन ज्लार)
लागि ग पलक पल सौं पल लागत ही पल में प्य आये)
ज्योंदी उठो उनके मिलिवे केंह चोंकि परी पिठ पास न पयै।
मीरन तौ सब सोइ कै खोबत, में प्रिय पीतस জাহা गंवाये ॥
( मौय) रल
ले वपने अपने मन की दुलही उलही छुवि भाग परी सी
अंक निर्सक्र सो के परियेक लला मुख चूमि संचार घरी सी॥|
यो. लप्यौ चिपटी दिय सौं जसवंत बिसाल प्रसून छुरी सौ।
नैनन के खुलते वह मूरति पास परी उड़ि जाति प्स सी]
( यशवंत्त सिंह )
सोवत आज्ञच सखी सपने ह्विजदेव जू आमि मिले बनमाली |
ज्योंहि उठी मिलिवे केह धाय, सो हाय मुजान भुजान पे घालौं ॥
बोलि उठे ये पपीहन तों लगि, पीठ ऋर्डां कह्दि कर कुचाली ।
सम्पति सी सपने की भई, मिलिवे।, ब्रजराज को आज को आली ॥
५ € हिजदेव )
शशिनाथ बिनोद में इनकी अश्रलक की लटकिः देखिये | ।
कञ्चन जित लाल की वैदी तातर सुरंग सजाई)
टु कपोल के निकट लाइके कुटिल अलक छुटकाई ॥
मनु इन्दो सकरन्द पान को मुख अम्बुज ढिंग आये।
नहिं उलभात जात नेक् हूँ ऐसे महा लोभ জিঘতাই |
अलके' कुटिल होने पर सी जरा भी नहीं उलमती हैं| कैसी
आश्वय घटना है और उसका कारण कविवर ने कैसा उपयुक्त
चतला दिया हैं। कवि कहता है कि वे कहाँ उलके', रास्ते मे
उनको उसमाते दाली क्या काई चीज़ है ? क्या मुखास्तुज्ञ-ररू-
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