सोमनाथ रत्नावली | Somnath Ratnavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) पौद़ी दती पल्लिगा पर मे निशि ध्यान श्रौ ग्यान पिया सन ज्लार) लागि ग पलक पल सौं पल लागत ही पल में प्य आये) ज्योंदी उठो उनके मिलिवे केंह चोंकि परी पिठ पास न पयै। मीरन तौ सब सोइ कै खोबत, में प्रिय पीतस জাহা गंवाये ॥ ( मौय) रल ले वपने अपने मन की दुलही उलही छुवि भाग परी सी अंक निर्सक्र सो के परियेक लला मुख चूमि संचार घरी सी॥| यो. लप्यौ चिपटी दिय सौं जसवंत बिसाल प्रसून छुरी सौ। नैनन के खुलते वह मूरति पास परी उड़ि जाति प्स सी] ( यशवंत्त सिंह ) सोवत आज्ञच सखी सपने ह्विजदेव जू आमि मिले बनमाली | ज्योंहि उठी मिलिवे केह धाय, सो हाय मुजान भुजान पे घालौं ॥ बोलि उठे ये पपीहन तों लगि, पीठ ऋर्डां कह्दि कर कुचाली । सम्पति सी सपने की भई, मिलिवे।, ब्रजराज को आज को आली ॥ ५ € हिजदेव ) शशिनाथ बिनोद में इनकी अश्रलक की लटकिः देखिये | । कञ्चन जित लाल की वैदी तातर सुरंग सजाई) टु कपोल के निकट लाइके कुटिल अलक छुटकाई ॥ मनु इन्दो सकरन्द पान को मुख अम्बुज ढिंग आये। नहिं उलभात जात नेक् हूँ ऐसे महा लोभ জিঘতাই | अलके' कुटिल होने पर सी जरा भी नहीं उलमती हैं| कैसी आश्वय घटना है और उसका कारण कविवर ने कैसा उपयुक्त चतला दिया हैं। कवि कहता है कि वे कहाँ उलके', रास्ते मे उनको उसमाते दाली क्‍या काई चीज़ है ? क्या मुखास्तुज्ञ-ररू- > % ॥




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