कोणार्क | Konark
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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No Information available about जगदीश चंद्र माथुर -jagdish chandra mathur
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ )
भगवान सूयं का जग्मगाता हुआ पृण्यधाम--
कोणाक-- ,
पूर्वी सागर के तट पर उदय हो रहा है ।
बारह सौ शिल्पियों और मजदूरों की वारह बरस कौ
लम्बी साधना और कठोर मेहनत के बाद
विशु की विराट कल्पना साकार हो चली है ।
हाँ......विरादू कल्पना !
पाषाण का एक विशाल रथ--
सेकड़ों गज लम्बी चौड़ी हैं जिसकी पिष्ठ,
दुर्ग-प्राचीर से वृहद हैं जिसके बारह चक्र,
और गिरि से विपुल हं जिसके सात भव्य धोड़े)
और मन्दिर के भीतर हं एक अनोखा चमत्कार--
सुर्य भगवान की जाज्वल्यमान मूर्ति, चुम्बक पत्थर के
आकर्षण से, निराधार, शून्य मे, ल्टकी हृदं हे!
«हा, विराट कल्पना साकार हो चली !
लेकिन मन्दिर का शिखर पूरा होना वाकी हैं ।
सारे उत्कल की आँखें कोणार्क पर हैं ।
केव उसका शिखर पूरा होगा ?
फव उस पर केसरी पताका फहरायेगी ?
कब ? ......-०«वुूवकेब £
( मौन । संगीत क्षणिक उठान के वाद बन्द हो जाता
है। अन्धकार विगलित हो रहा है। और पर्दा उठता है।)
User Reviews
ईपुस्तकालय
at 2020-06-02 02:16:10"लेखक का नाम ठीक कर दिया गया है|"
drjaibhu
at 2020-05-30 10:59:34"लेखक के नाम में त्रुटि है."
dpagrawal24
at 2020-05-30 03:24:02"लेखक का नाम ठीक कीजिए. "