कोणार्क | Konark

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Konarak by श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) भगवान सूयं का जग्मगाता हुआ पृण्यधाम-- कोणाक-- , पूर्वी सागर के तट पर उदय हो रहा है । बारह सौ शिल्पियों और मजदूरों की वारह बरस कौ लम्बी साधना और कठोर मेहनत के बाद विशु की विराट कल्पना साकार हो चली है । हाँ......विरादू कल्पना ! पाषाण का एक विशाल रथ-- सेकड़ों गज लम्बी चौड़ी हैं जिसकी पिष्ठ, दुर्ग-प्राचीर से वृहद हैं जिसके बारह चक्र, और गिरि से विपुल हं जिसके सात भव्य धोड़े) और मन्दिर के भीतर हं एक अनोखा चमत्कार-- सुर्य भगवान की जाज्वल्यमान मूर्ति, चुम्बक पत्थर के आकर्षण से, निराधार, शून्य मे, ल्टकी हृदं हे! «हा, विराट कल्पना साकार हो चली ! लेकिन मन्दिर का शिखर पूरा होना वाकी हैं । सारे उत्कल की आँखें कोणार्क पर हैं । केव उसका शिखर पूरा होगा ? फव उस पर केसरी पताका फहरायेगी ? कब ? ......-०«वुूवकेब £ ( मौन । संगीत क्षणिक उठान के वाद बन्द हो जाता है। अन्धकार विगलित हो रहा है। और पर्दा उठता है।)




User Reviews

  • ईपुस्तकालय

    at 2020-06-02 02:16:10
    Rated : 8.7 out of 10 stars.
    "लेखक का नाम ठीक कर दिया गया है|"
    सुझाव के लिए अत्यंत धन्यवाद|
  • drjaibhu

    at 2020-05-30 10:59:34
    Rated : 8.7 out of 10 stars.
    "लेखक के नाम में त्रुटि है."
    इस पुस्तक के लेखक श्री जगदीश चन्द्र माथुर हैं, न कि सुमित्रानंदन पन्त.
  • dpagrawal24

    at 2020-05-30 03:24:02
    Rated : 8.7 out of 10 stars.
    "लेखक का नाम ठीक कीजिए. "
    कोणार्क एक नाटक है और इसके लेखक जगदीश चंद्र माथुर हैं, न कि सुमित्रानदन पंत, जैसा आप लिख रहे हैं. पंत जी ने तो इसकी भूमिका लिखीए है. कृपया ठीक कर दें.
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