तरंगित हृदय अथवा विचार तरंगमाला | Tarangit Hradaya Athava Vichar Tarangmala

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Tarangit Hradaya Athava Vichar Tarangmala by पं॰ देवशर्मा जी - P. Devsharma Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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শ্গীইসু विचार तरंगमाला ु तरंग १ जा नमस्कार 3৮ -ए > (874৬৩ हे जगन्मातः ! में तुम्हें नमस्कार करता हैँ। अपने दोनों हाथोको जोड़कर तुम्होरे चरणोमे सिर भुकाता हूँ। अपने प्राण ओर अपान, खुख और दुःख, ईप्सा और जिद्दासा, राग ओर द्वेष, लाभ और हानि, मान और अपमान, जय और पराजय, सिद्धि ओर असिद्धिके दाये और बायें दाथोको जोड़कर, हे मातः ! में तुस्दारे चरणौमें रखता हैं। में अपने इन दोना हाथोकों जोडकर--पूरी तरह मिलाकर दी अव णन करना चादता ह ओर अपने श्रहंकारङ्े मस्तकको . ८ शक्कर सदा लिये तेरे चरणे समर्पित कर देना चाहता | मातः! म कव यह्‌ परिपूरं नमस्कारकर छतङ्ृत्य हो सक्ल्गा ? मेरा तो परम परम पुरुषार्थ यही है कि कभी ऐसा अपना सर्वभावेन नमस्कार तेरे चरणामे निवेदन कर सकं । গু শু तुस्टे नमस्फार परनेके अतिरिक्त और में वथा करट! तुम




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