श्री स्वामी रामतीर्थ भाग - 24 | Shri Swami Ramatirth Bhag - 24

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Shri Swami Ramatirth Bhag - 24 by स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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:- अरणय-सम्बाद...... ११ उत्तर:- अच्छा, -तथास्तु भीः विस्मित ह कि ` यद्चपि-समस्त रुपो ( अवस्थाओ ) में हम एक नहीं हो सकते, . - ओर तब भी हम एक हैं । | सम्भव है कि-चगु . दश्वन-शाखः- इस को सिद्ध करने के 5 योग्य न हो, इंन्द्रियां इसे दशोने में पूरतया असहाय हो, तब . भी यह है ऐसा ही। जब तत्त्व का अचुभव कर लिया जाता : है; तब वाह्य-नामरूप नष्ठ हो जाता हे 1 प्रेम इसे सिद्ध करता . है।-गग& पण०प1 आए ` वदत्‌ ही है” “तू आप ईश्वर हे प्रश्न/- आप ` ईश्वर को नपुंसकत्व मे क्यो संबोधित হবে ই? क ২ `. उन्तरः- कोड इश्वर को “स्वर्गीय, पिता' करके पूजते हैं, . आर उसे पुल्लिग नाम से संबोधित करंते हैं। कुछ लोग : परमात्मा को दिव्य माता” करके पूजते है, उन्हें उस को संथ्री-. - लिंज्र वाचक नाम से संबोधित करना चाहिये। अन्य लोग .. - : इष्वर को श्रिय प्रेम-पात्र' करके पूर्जते है (जेसे फ़ार्सी कवि)।. . अतः इंशंचर के लिये कोई भी नाम नियत. करने से पूर्व हमे . - को यह निश्चित फेर लेना--चाहिये कि- आया इंश्वंस मिस .. (क्वारी कन्या) हे, मिसेज़ (विवाहिता खी) दै, चा सिस्टर - (महोदय-मलुष्य) है। :.. ग, प्रश्नः - तय किर ईष्वर हे क्या? .. ` < ~ उत्तरः--न तो मिख दे, न मिसजञदै, न मिस्टर है, कन्तुः .. ` मिस्दी (गद्य रदस्य) ह ! „` ~ ` जी ना




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