पुराण मत पर्य्यालोचन | Puran Mon Parjolochan

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Puran Mon Parjolochan by उपाध्याय रामदेव जी - Upadhyay Ramdev Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(.& ) श्वेरण नं करगे । ` प्रलुत हेतुवाद म मोहित हो कर यज्ञादि भी व्यागदेमे | अगिः चन्न कर माकण्डेय ने इस से भी भयंकर अवध्या कलिकाल की दिखाई है | प्राठक गण मूल में देखने का कष्ट उठाएंगे। | ध চি इस प्रकार प्रथम से ही यह भारत अधःपतन के अपने लक्षण “उद्भोषित कर रहा है। और भा तुलना कांजिये | महिला समाज का ( ४ ) रामायण* काल मे लिय कौ कितनी उच्च दशा > अनादर थी मदिला मात्र का क्रितना मान था | करित आद्र माव से स्ली जाति को मांठुबुद्धि से देखा जाता था। उस इश्य को स्मरण कीजिये 4 जब हि राम के वन-वास चले जान पर भरत आर शर्नष्न मामा के घर से लोट के आंत हैं ओर राम लक्ष्मण का वनवास देख कर माता पर কান करते हैं | शत्रध्न ने विवश होकर मन्थरा दासी को केश से प्रकड वर स्सा घसीटा । उसकी शर्त दशा देख कर भरत के वचन इस प्रकारं निकालते : द शत्रध्न, स्त्रियें सत्र प्राणिमात्र मं अवध्य होती 61 अतः क्षमा करो। में इस पाया दुष्टाचरण करने वाली केकयौ के मार दूं“, यदि धर्म-पथ पर चलने वाला राममुझ माता के हत्यारे को बुरी दाष्टि से न देखे | यादे राधव इस कुबड़ी की पौटठा हुक भी मुन लेगा तो धमात्मा राम मुझ से ओर तुझ से निश्चय से भाषण भी नहीं करेगा {` + इस प्रकार भरत के बचने को सुन कर शयुभ्न इस अकार्य करने से हट गया | * (*) न व्र॑तानि चरिष्यन्ति बाह्मणः वेदनिन्दकाः ` ` ` न यद्यन्तिन होष्यन्ति हेतुवादविमोहिताः ॥ ( + ) रमायर--श्रयो० का०, ७८ सगं ` तं प्रेय भरतः कद्ध शचुष्न मिदम मवीत्‌ । अवध्याः सवं भूतानां प्रमदाः ज्षम्यंतामिति ॥ इन्यामहमिमां पापां कैकेयी दुशट्चारिणीम्‌। ` यदि मां धामिकी रामो नासूयेन्मात्धातकम ॥ .. इमामपि दतां कुष्जां यदि जानाति राधवः। - ष त्वाञ्वैव বলা धम्‌ ॥ 1: ই स्य অন্য: भ्रत्वा शत्रष्नो लक्ष्मणानुजूः। ` -न्यवन्तसे तसो दोषान्तां ममोच चस सूचितम्‌ + ( २९




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