विवेकानंद साहित्य जन्मशती संस्करण [भाग ४] | Vivekananda Sahitya Janmshati Sanskaran [Bhag-4]
श्रेणी : जीवनी / Biography, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
688
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ईठवर का दादानिक विवेचन
ईश्वर कौन है? जिससे विश्व का जन्म, स्थिति और प्रलुय होता है,
वही ईश्वर है। वह “अनन्त, शुद्ध, नित्य मुक्त, सर्वशक्तिमान, सर्वेज्ञ, परम कारुणिक
मौर गुरूमो का भी गुर है ओर सर्वोपरि, वहं ईश्वर अनिवेचनीय प्रेमस्वरूप
है।” ये सारी परिभाषाएँ निश्चय ही सगुण ईश्वर की हैं। तो क्या ईदवर दो हैं ?
एक सच््विदानन्दस्वरूप, जिसे ज्ञानी नेति नेति' करके प्राप्त करता है मौर दूसरा,
मक्त का यह प्रेममय भगवान् ? नही, वह् सच्चिदानन्द ही यह् प्रेममय भगवान् है,
वह् सगुण ओौर निर्गुण, दोनो है । यह सदैव ध्यान मे रखना चाहिए कि भक्तं का
उपास्य सगुण ईदवर, ब्रह्म से भिन्न अथवा पृथक् नही है ! सव कुछ वही एकमेवा-
द्वितीय ब्रह्म है! पर हाँ, ब्रह्य का यह निर्गुण निरपेक्ष स्वरूप अत्यन्त सूक्ष्म होने के
कारण प्रेम एव उपासना के योग्य नही । इसीलिए मक्त ब्रह्म के सापेक्ष भाव अर्थात्
परम नियन्ता ईर्वर को ही उपास्य के रूप में ग्रहण करता है। उदाहरणार्थ, ब्रह्म
मानो मद्री या उपादान के सदृश है, जिससे नाना प्रकार की वस्तुएँ निर्मित हुई
हैं। मिट्टी के रूप मे तो वे सब एक हैं, पर उनका आकार या अभिव्यक्ति उन्हें
भिन्न कर देती है। उत्पत्ति के पूर्व वे सबकी सब मिट्टी मे अव्यक्त भाव से विद्यमान
थी। उपादान की दृष्टि से अवश्य वे सब एक हैं, पर जब वे भिन्न भिन्न आकार
घारण कर लेती हैं और जब तक वह ञाकार बना रहता है, तब तक वे पृथक् पृथक्
ही प्रतीत होती हैं। एक मिट्टी का चूहा कभी मिट्टी का हाथी नही हो सकता, क्योकि
गढ जाने के वाद उनकी आकृति ही उनमे विशेषत्व पैदा कर देती है, यद्यपि आक्ृति-
हीन मिट्टी की दशा में वे दोतो एक ही थे। ईश्वर उस निरपेक्ष सत्ता की उच्चतम
अभिव्यक्ति दै, या दूसरे शब्दो मे मानव-मन निरपेक्ष सव्य की जो उच्चतम धारणा कर
सकता है, वही ईश्वर है 1 सृष्टि अनादि है, जौर उसी प्रकार ई्वर् भी अनादि ই)
वेदान्त-सूत्र के चतुर्थ अध्याय के चतुथं पाद मे यह वणेन केरने के पश्चात्
कि मुक्ति-लाभ के उपरान्त मुकतात्मा एक प्रकार से अनन्त शक्ति और ज्ञान प्राप्त
करती है, व्यासदेव एक दूसरे सूत्र मे कहते हैं, 'पर किसीको सृष्टि, स्थिति और
१ जन्मायस्य यत* ॥ ब्रह्मसूत्र 1१1 १४२॥
२ स॒ ईदइबर मनिरबंतननोयप्रेसल्वरूप ।
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