श्री विनयकी टीका पर सुम्मतियाँ | Shri Vinayaki Teeka Par Sammatiya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
859
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रामायण 1 (४)
২ ০০৮২ লিলি জলা
১
| शर = घोष फराने वाला । शङररूपिणम् = शिवस्वरूप । यमर् आश्िते; ८
जिस के आधार से | दहि-विशेष करके । पक्रः अपि-टेहा भी । चन्द्रः
घन्द्रमा । सर्वत्र वन्धते-सब स्थानों में बस्दना किया जाता है॥
झअम्वपय--धोधमर्य शंकररूपिणम् शुरु निर्त्य बन्दें | यम् शाश्रित: वक्र'
) | भपि चन्द्रः सर्वेत्र बनते हि ॥
अर्थ-पैं ज्ञान से परिपूर्ण शिव स्वरूप अपने शुरु जी की सदेव वंदना फरता
हूँ । लिन का आश्रय करके देड़ों चन्द्रमा ( अर्थात् द्वितिया का चन्द्रमा ) भी सब
स्थानों में घंदना किया ही जाता है ॥
भावार्थ - मिस प्रकार शिव जी के मस्तक में रहने से द्वितियां का टेदा चन्द्र भी
मान के पाता है उसी प्रकार शहडररूपी शुरु जी की कृपा से में जो टेढ़ा अर्थात् सब
भकार बुद्धिहीन हे से प्रतिष्ठा फो प्त हॐ ॥
श्लो०- सीताराम युणग्राम पुणयारस्य विरारिणौ ।
वंदे ® विशुद्ध विज्ञानो फवीर्वर कपौश्वरो ॥ ४॥
विज्ञया छुन्द् - ज्यों मणि में अति ज्योति हुती रद ते फछु और मदहाल्ुविद्धाई ।
चन्द्र॒दि घन््दृत ते सथ 'बेशव” ईंश ते षन्द्नता तिप ॥
भागिप्यी इति चै शति पावन बाबन ते अति पावनताई ।
स्पा निमियंश बड़ोश इतो भश खीय सेँयोग बड़ीय बड़ाई ॥
# पिथशुद्ध विशान कवीश्यट--कथा प्रसिद्ध है कि एक दिन चादमीकरि समुनि'दों
पर षे स्मय तमसा नदी फे किनारे ज्ञा पहुँचे तो यहां प्या देखते हैँ कि
ब्रांच पत्तियों के जोड़े में से एक फे। जिसो यहेलिये ने घारा मार दिया था
झौर उस का जोडा चियोग दुः से तदफाडाता या । उसी समय दय्यांद
हो मुनिजी के मुख से यद श्लोक निर्न पड़ा ক্স
সতী মা निषाद प्रतिष्ठां स्वमेंगम. शाश्यतीः समा. 1
1 यत्कीच सिधुनादेकमवधीः काम मोदितम् ॥ (उत्तर रामचरित)
भाव यहद्द है कि दे यदेलिये! जो तू मे काम मोहित फ्ोँच फे जोड़े में
से पक का घय किया हैं इसडेतु तू अगणित वर्षों तक प्रतिष्ठा के न पाये ॥
छन इस पर से प्रह्मदेव ने प्रकय হী আহ জী यह का कि दे ऋषि!
तुम्दें शन्द् गरह्म का प्रशाश হুমা ই । तुम्हारे आप नेत्र दोचें अर्थात् जो मनुष्यों
के न दिखे से तुम देखो और उन नेन्नों की ज्येति अध्याइत दो याने तुम
कई भी यात देखते से असमर्थ न हो और न वार्ताओं के प्रकट फरने
घाले दोशो | तुम भादि-करपि हुए इसदेतु रामचरित्न धर्णम करो ॥ इतगा कह-
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