विविध दश रस संग्रह | Vividha Dash Ras Sangrah

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Vividha Dash Ras Sangrah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१) সই নত ॥ ११ ॥ एक नर दान बहुविध दिये २, आपे ऊल्मट आएि ॥ निंदे तेढनें नित्यप्रत्यें रे, जुममुखो-ते जाण रे ॥ कमे० ॥ १४ ॥ गर्भ राल थर रहे रे, वधे नहिं जे बाल ॥ पूरव नव तेणे आद स्यां. रे, क्वण क्म विकराल रे ॥ क्म०॥ १३ ॥ जा तमातज्र ते बालने रे, विवाहनी धरे शंक ॥ मारे पाड गर्जनें रे, तेहनें शाल निःशंक रे ॥ कमे० ॥ १४ ॥ स्थानच्रष्ट नर जे ढुवे रे, पामे नहि किहां ठाम ॥ पापप्रकृति कोण तेहने रे, ते संनलावो खाम रे ॥ ऐ कसै० ॥ १५ ॥ मारग अथ जल थानके रे, इक्त महाफल ज्ञार ॥ पशुपंखी पंथी जिहां रे, व्ये विशराम अपार रे॥ कर्म० ॥ १६॥ कापे एहुवा इकनें रे, ते हनें ठाम न ढोय ॥ जिहां जाये तिहां ভব জু ই, बेसण न दिये कोय रे নথ ॥ १७ ॥ कोठ रोग घट जेहने रे, धोल्लु थाये गात्र । मोहोटा माणस जेह शु रे, बोले नहीं कणमात्र रे ॥ कसेए० ॥ १० ॥ लो ये बृत्ति जे साधुनी रे, गोवध चोरी जूठ॥ कन्या ध न जे बाबरे रे, कूलां कूंपल झुछ रे ॥ कर्म० ॥ २९८॥ खूटे खांतें ख्यालशुं रे, ते नर कोढी रे थाय ॥ कीधां ~` कमे न बूटीयें रे ॥ जब तब उःख दे आय रे॥कर्से० लो প্র




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